केदारनाथ में फिर आई तबाही, बादल फटने से 200 तीर्थयात्री रास्ते में फंसे

Kedarnath-Clud-Blast

नई दिल्ली : उत्तराखंड में एक बार फिर कुदरत का कहर देखने को मिल रहा है. केदारनाथ में बादल फटने के बाद भारी तबाही की आशंका जताई जा रही है. बुधवार रात बादल फटने की वजह से सोनप्रयाग में मंदाकिनी नदी का जलस्तर अचानक बहुत ज्यादा बढ़ गया है. लिंचोली में बादल फटने की खबर मिलने के बाद SDRF, जिला पुलिस, जिला प्रशासन समेत सभी तंत्र अलर्ट मोड पर हैं. केदारनाथ धाम में 150-200 यात्रियों के फंसे होने की आशंका है.

सूत्रों के मुताबिक बादल फटने की घटना केदारनाथ पैदल मार्ग भीम बली के गदेरे में सामने आई है. बादल फटने के साथ मौके पर लैंडस्लाइड भी हुआ है. भारी बोल्डर मलबा आने से पैदल मार्ग का करीब 30 मीटर हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है. एहतियातन पैदल मार्ग पर आवाजाही बंद कर दी गई है. भीम बली में करीब 150 से 200 तीर्थ यात्री फंसे हुए हैं. अभी तक किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है.

हरिद्वार में बुधवार शाम हुई भारी बारिश के बाद पूरा शहर जलमग्न हो गया. खड़खड़ी सूखी नदी में पानी भरने से कांवड़ियों का वाहन बह गया. कई इलाकों में सड़कें पानी में डूब गयीं. कनखल थाने में भी बरसात का पानी घुस गया. बारिश से भूपतवाला, हरिद्वार, नया हरिद्वार, कनखल, ज्वालापुर की कई कॉलोनियों और बाजारों में बुरा हाल है, हर जगह पानी भर गया है.

क्षेत्रीय मौसम केंद्र ने अगले 48 घंटों के लिए उत्तराखंड के सात जिलों में भारी से बहुत भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है. यह अलर्ट मंगलवार रात से प्रभावी है. चेतावनी में कहा गया है कि देहरादून, टिहरी, पौड़ी, नैनीताल, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और चंपावत जिलों के अलग-अलग इलाकों में भारी से बहुत भारी बारिश, गरज के साथ बारिश, बिजली गिरने और बहुत तेज से अत्यंत तेज बारिश की संभावना है.

देहरादून, नैनीताल और उधम सिंह नगर में 31 जुलाई के लिए स्कूलों को एक दिन के लिए बंद कर दिया गया. देहरादून जिला प्रशासन द्वारा जारी निर्देश के अनुसार भारी बारिश के कारण भूस्खलन की उच्च संभावना को देखते हुए सभी सरकारी और निजी स्कूल कक्षा 1 से 12 तक और आंगनवाड़ी केंद्र बुधवार को बंद रहेंगे.

देहरादून के स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्र 26 जुलाई को भी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा भारी बारिश के लिए जारी ऑरेंज अलर्ट के कारण बंद कर दिए गए थे. इस बंद में कक्षा 1 से 12 तक के सभी सरकारी और निजी संस्थान शामिल थे. यह निर्णय सुरक्षा सुनिश्चित करने और खराब मौसम की स्थिति के दौरान विशेष रूप से भूस्खलन जैसी घटनाओं से बचने के उद्देश्य से लिया गया था.

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