कश्मीर के खीर भवानी मंदिर के कुंड का रंग इस साल हुआ हरा

Kashmir-Temple

नई दिल्ली : कई बार आस्था और इत्तेफाक इतने करीब हो जाते हैं कि उनपर यकीन करना बेहद मुश्किल हो जाता है. कश्मीर का एक ऐसा मंदिर जिसे लेकर एक हैरान करने देने वाला दावा मिलता है.. कहते है..इस मंदिर में विपदा या कोई आफत आने से पहले ही भविष्यवाणी हो जाती है. कहा जाता है कि घाटी में संकट का संकेत एक कुंड दे दिया करता है. इस कुंड के सतरंगी पानी के हर रंग में शुभ और अशुभ से जुड़े संकेत हैं.

साल 1999 का कारगिल युद्ध, जब हिंदुस्तान के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की काली नजर पड़ी थी. जब उसने हिंदुस्तान के ताज पर कब्जे के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. जब हिंदुस्तान के रणबांकुरों ने सीमा की असीम अनुशंसा में बंधकर के दुश्मनों को धूल चटा दी थी. पाकिस्तान की नापाक नजरों में बारूद झोंक दी थी. तब कश्मीर पर पड़ी काली नजरों से एक कुंड भी लाल पड़ गया था.

साल 2014.. जब आसमान से कश्मीर में आफत बरसी थी. घाटी के कोने-कोने को बहा ले जाने पर नदियां आमादा थी. तब भी एक पवित्र कुंड के पानी ने रंग बदला था. जब घाटी के ही कुछ भटके हुए नौजवान घाटी का ही सीना छलनी करने पर आमादा थे. जब घाटी में आतंक के खिलाफ छिड़ गई थी सबसे भीषण जंग. तब भी एक पवित्र कुंड कुछ इशारा कर रहा था.

साल 2019 जब घाटी में अमन की बहाली के लिए अनुछेद 370 हटाया गया था. तब भी कश्मीर के इस कुंड के पानी का रंग बदल गया था. साल 2022 में जब देश औऱ दुनिया में कोरोना ने दस्तक दी थी. हिंदुस्तान के शहर-शहर कोरोना की दहशत से कांप रहा था. तब भी इस कुंड का पानी लाल पड़ा गया था.

साल 2024 में जब कश्मीर में अनुछेद 370 हटने के बाद चुनाव हुआ. तब भी इस कुंड के पानी का रंग हरा हो गया था. और साल 2025 में जब पहलगाम में अटैक हुआ. हिंदुस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर पाकिस्तान को धूल चटाई. तब भी इस पवित्र कुंड का पानी का रंग बदला है. आखिर इस कुंड के सतरंगी पानी की पहेली क्या है.

आखिर कुंड के रंग बदलने और घाटी पर विपदा का इत्तेफाक क्या है? विपदा की भविष्यवाणी करने वाले कुंड का राज क्या है?

खीर भवानी माता का एक ऐसा दरबार, जहां के पानी में भी चमत्कार है. कुंड के पानी से आपदा का पता चलता है और जब भी घाटी पर कोई विपदा आई है. खीर भवानी माता ने कुंड का पानी का रंग बदलकर संकेत जरूर दिया है..कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी खीर भवानी मां हर बार कश्मीरी पंडितों पर कृपा बरसाती हैं. संकट को हरती तो हैं ही, उसके आने से पहले इशारा भी करती हैं.

चारो ओर चिनार के पेड़ों और नदियों से घिरा एक ऐसा मंदिर, जिसमें भक्तों की गहरी आस्था है. कहते है इस दर से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता. गंगा-झेलम की मिट्टी से गढ़ा ये मंदिर राग्न्या देवी यानी माता खीर भवानी को समर्पित है. माता खीर भवानी शक्ति की एक रूप हैं और माता दुर्गा की अवतार मानी जाती हैं.

‘राग्य’ का अर्थ है ‘अनुकंपा’ या ‘कृपा’…यानी माता के इस चौखट पर माथा टेकने वाला हर भक्त मां की असीम कृपा पाता है. माता खीर भवानी भी संकट में पड़े भक्तों को सहजता से उबार लेती हैं. खीर भवानी का यह मंदिर श्रीनगर के तुलमूल गांव के पास स्थित है..जहां श्रद्धालु मंदिर में जाकर खीर देवी को चढ़ाते हैं..इसलिए देवी का नाम खीर भवानी पड़ा.. महिलाएं विशेष रूप से रक्तचंदन और चांदी की चुड़ियां अर्पित करती हैं.

कहते है आस्था के इसी दर पर एक अजूबा मिलता है..श्रद्धालु यहां ‘सात रंगों वाले जलकुंड’ के दर्शन करने आते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस कुंड का पानी हर आने वाले विपदा की भविष्यवाणी करता है..हर रंग का अलग मतलब है.. हर रंग की अलग कहानी है.

साल 1999 में कुंड का रंग लाल हो गया था…जिसके बाद कारगिल युद्ध हुआ था. साल 2014 में कुंड के पानी का रंग काला हो गया था…जिसके बाद यहां भंयकर बाढ़ आई थी. साल 2019 में कुंड के पानी का रंग हरा हो गया था..तब जम्मू-कश्मीर से अनुछेद 370 हट गया था. साल 2022 में कुंड के पानी का रंग फिर लाल हुआ था..तब देश में कोरोना महामारी आई थी.

साल 2024 में कुंड के पानी का रंग नीला हो गया था, जो खुशहाली का संकेत है और अब साल 2025 में कुंड का रंग हरा हो गया है. जो सौहार्द का इशारा कर रहा है. मंदिर के कुंड के पानी के के रंग के बदलाव को शुभ और अशुभ संकेतों के रूप में देखा जाता है.

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जब-जब कश्मीर पर संकट आया. कुंड का रंग बदला. 1990 में जब कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़ा.. तब इस जलकुंड का रंग गहरा काला हो गया था और आज जब उम्मीदें लौट रही हैं.. तब पानी हल्का हरा दिख रहा है.

देवी खीर भवानी का ये मंदिर एक झरने के बीच में बना हुआ है.. जिससे चारों तरफ एक विशाल और खूबसूरत पत्थर है. खीर भवानी मंदिर में कश्मीरी पंडितों की आस्था तो हैं ही. इस मंदिर में मुस्लिम लोग भी आते हैं. कहा जता है कि घाटी में ये मंदिर संप्रादायिक सौहार्द का प्रतीक भी है..
आस्था के साथ साथ खीर भवानी का मंदिर और मेले की खास बात यह हैं कि यह कश्मीरियत की मिसाल हैं. यहां हिंदू-मुस्लिम एकता दिखती है.

यहां पर पूजा के लिए सारी सामग्री मुसलमान बेचते है. यहां तक कि चढ़ावे का दूध भी मुसलमान के हाथो से धोया होना ज़रूरी है. एक बार फिर खीर भवानी के दर पर कश्मीरी पंडितों का तांता लगा है. दूर दूर से कश्मीरी पंडित अपनी कुलदेवी के दर पर पहुंच रहे हैं.

खीर भवानी माता को लेकर कई मान्यताएं है. कहते है लंकेश ने भी खीर भवानी माता का कठोर तप किया था और उन्हें अपने साथ लंका में ले जाकर अपनी कुलदेवी भी बनाया था. रावण का अनैतिक आचरण माता को रास नहीं आया और माता लंका से कश्मीर चली आईं थी. तब से वो कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी के रूप में हर संकट को हर रही हैं.

खीर भवानी मंदिर, देवी का एक ऐसा स्थान..जो कश्मीरी पंडितों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. यहां विराजने वाली रागन्या  देवी का लंकेश रावण भी उपासक था. दावा किया जाता है कि इस मंदिर के कुंड के पानी ने हर आफत की भविष्यवाणी की है. हर आपदा से पहले पानी रंग बदलता है और यही वजह है कि खीर भवानी माता कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी कहलाती हैं.

पौराणिक मान्यता कहती है कि इस मंदिर का अस्तित्व 6 हजार साल पहले आया औऱ इसकी कथा जुड़ी है रावण से. कथा है कि देवी रागन्या  रावण के तपस्या से खुश होकर उसके सामने प्रकट हुईं. माता की निरंतर आराधना के लिए लंकेश उन्हें अपनी लंका में ले गया और देवी की प्रतिमा स्थापित की लेकिन असुर की लंका देवी को यह रास नहीं आया.

रावण के अनैतिक तौर तरीकों से नाराज होकर माता रागन्या ने राम भक्त हनुमान को उनका आसन श्रीलंका से कश्मीर स्थानांतरित करने का आदेश दिया..कहते हैं तब माता रागन्या ने शीला का रूप धारण कर लिया था और राम भक्त हनुमान उन्हें हाथों में उठाकर कश्मीर ले आए थे.

मान्यताओं के अनुसार,  जिस जगह देवी रंगया विश्राम कर रही थीं. वो बाद में उपेक्षा की शिकार हो गई. तब देवी ने कश्मीरी पंडित को दर्शन दिया और उस जगह पर लेकर गईं. जहां उनका स्थान था. फिर उस जगह पर लोग दूध औऱ शक्कर चढ़ाने लगे. इस तरह रंगया माता का मंदिर खीर भवानी के नाम से जाने जाना लगा.

खीर भवानी मंदिर का निर्माण सन 1912 में महराजा प्रताप सिंह ने करवाया था..बाद में महाराजा हरी सिंह ने इसका जीर्णोधार कराया था. लेकिन वक्त ने करवट ली और फिर कश्मीर में वो दौर आया. जब कश्मीरी पंडितों पर घाटी में अत्याचार बढ़े. ये वही समय था, जब खीर भवानी के कुंड का पानी गहरा काला हो गया था. यानी कश्मीरी पंडित पर आने वाली विपदा को माता ने पहले ही बता दिया था.

और अब एक बार फिर कुंड का पानी गहरा हरा हो गया.. जो इशारा कर रहा है कि घाटी में अब हर तरफ हरियाली आने वाली है.. और इस बार कुंड का रंग तब बदला है. जब हर साल की भांति ज्येष्ठ अष्ठमी के मौके पर खीर भवानी मदिर में मेले का आयोजन किया गया है. कश्मीरी पंडितों के लिए ये मेला बेहद खास माना जाता है क्योंकि खीर भवानी के साथ कश्मीरी पंडितों की बहुत सारी यादें जुड़ी है और खीर भवानी कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी भी हैं.

अब वो दिन आ गया है, जब फिर से कश्मीरी पंडित घाटी में लौट रहे हैं. इस साल जब पहलगाम में आतंकी हमला हुआ लेकिन खीर भवानी माता पर कश्मीरी पंडितों की अटूट आस्था ही है.. जो खीर भवानी का दरबार फिर से गुलजार है. पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में ये सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है..जिसमें माता के भक्तों ने बड़ी संख्या में शामिल होकर आतंक पर आस्था की जीत का संदेश दिया है.