पहली डिजिटल जनगणना : 16 साल बाद होगी 16वीं जनगणना, 30 लाख गणनाकर्मी लगेंगे

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नई दिल्ली : जनगणना 2027 देश में पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसमें लोग खुद अपने बारे में जानकारी दर्ज कर सकेंगे। मकानों की गणना या सूचीकरण का चरण, अप्रैल 2026 तक शुरू होने की संभावना है। यह देश में 16वीं जनगणना है, जो 16 साल बाद होगी। इससे पहले 2011 में जनगणना हुई थी। इसके लिए 30 लाख से ज्यादा गणनाकर्ताओं और पर्यवेक्षकों को जनगणना करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। ये घर-घर जाकर गणना करेंगे। संपूर्ण जनगणना प्रक्रिया पर 13,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने की संभावना है। हालांकि यह साफ नहीं है कि इस जनगणना के दौरान राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट किया जाएगा या नहीं।

नागरिकों से ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जैसे कि वे अपने घर में कौन सा अनाज खाते हैं, पीने के पानी का मुख्य स्रोत, प्रकाश का मुख्य स्रोत, शौचालयों तक पहुंच, शौचालय का प्रकार, और अपशिष्ट जल निकास की क्या व्यवस्था है। इसके अलावा, नहाने की सुविधा की उपलब्धता, रसोई और एलपीजीस पीएनजी कनेक्शन की उपलब्धता, खाना पकाने के लिए प्रयुक्त होने वाला मुख्य ईंधन तथा रेडियो, ट्रांजिस्टर और टेलीविजन की उपलब्धता के बारे में भी जानकारी ली जाएगी।

लोगों से जनगणना घर के फर्श, दीवार और छत की प्रमुख सामग्री, जनगणना घर की स्थिति, परिवार में सामान्य रूप से रहने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या और परिवार की मुखिया महिला है या नहीं, के बारे में पूछा जाएगा।

केंद्र सरकार ने जनगणना कराने को लेकर बड़ा एलान किया है। पूरे देश में मार्च 2027 से जातीय जनगणना कराई जाएगी। हालांकि, इससे पांच महीने पहले अक्तूबर 2026 में पहाड़ी राज्यों में जातीय जनगणना शुरू करा ली जाएगी। गृह मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फ से प्रभावित होने वाले राज्यों में जनगणना 1 अक्तूबर 2026 से ही मानी जाएगी।

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अप्रैल 2025 को एलान किया था कि इस बार भारत में जनगणना को जातीय आधार पर करवाया जाएगा। केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि मोदी सरकार अगली जनगणना के साथ जातीय आधार पर लोगों की गणना भी करेगी। गौरतलब है कि इससे पहले भी कई मौकों पर जातिगत जनगणना की मांग उठती रही है। लेकिन सरकार ने इन मांगों को दरकिनार कर दिया। लेकिन अब तारीखों के एलान के साथ आजाद भारत में पहली बार जातिगत जनगणना का रास्ता लगभग साफ हो गया है।

देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए।