नई दिल्ली : आज सावन मास का अंतिम सोमवार है, सुबह से ही शिवालयों में ‘बम-बम भोले’ और ‘हर हर महादेव’की गूंज है, भक्तों की भारी भीड़ मंदिरों में देखी जा रही है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने की होड़ मची हुई है।
आपको बता दें कि सावन के अंतिम सोमवार को ‘संपूर्णता’ का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, उनके कष्टों का अंत होता है और घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
आज के दिन जो कोई भी भगवान शिव की पूजा सच्चे मन से करता है, उसे भोलेनाथ का विशेष प्रेम प्राप्त होता है, उसके पापों का नाश होता है और उसे यश की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि :
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें ,स्वच्छ वस्त्र धारण करें इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद पूजा स्थल को साफ करके वहां गंगाजल का छिड़काव करें।
- भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद अर्पित करें।
- इसके बाद शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, और भस्म चढ़ाएं।
- और फिर इसके बाद जल अर्पित करे।
- पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करें और उन्हें फल, मिठाई और पंचमेवा का भोग लगाएं।
- शिवलिंग पर जल चढ़ाते वक्त ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
सावन के अंतिम सोमवार का महत्व :
- शिव पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और श्रद्धा से पूजन करने से शिवजी तुरंत प्रसन्न होते हैं।
- मान्यता है कि जो जातक पूरी श्रद्धा से इस दिन व्रत रखते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, विशेषकर विवाह, संतान और करियर संबंधी।
- विवाहित स्त्रियां पति की लंबी उम्र के लिए और कुंवारी कन्याएं योग्य वर प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत करती हैं।
क्या करें :
- शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं (बेलपत्र तीन पत्तों वाला और साफ होना चाहिए)।
- व्रत रखते समय एक समय फलाहार करें या निर्जला उपवास करें।
- भगवान शिव के साथ माता पार्वती, नंदी और गणेश की भी पूजा करें।
- अगर पूरे सावन सोमवार व्रत नहीं रख पाए हों, तो अंतिम सोमवार को अवश्य रखें।
क्या न करें :
- तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन) का सेवन बिल्कुल न करें।
- शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते न चढ़ाएं।
- शिव को हल्दी या कुमकुम न अर्पित करें।
- इस दिन झूठ, निंदा और क्रोध से बचें।
- महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान शिव पूजन नहीं करना चाहिए।
शिव जी की आरती :
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
Disclaimer : इस आलेख का मतलब किसी भी तरह का अंधविश्वास पैदा करना नहीं है। यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। NewsXpoz इस लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है इसलिए किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृपया किसी जानकार ज्योतिष या पंडित की राय जरूर लें।