जम्मू : जम्मू की जमीन से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए सेना के लिए भारत और सरकार और सेना के जवान लगातार काम कर रहे हैं. घाटी में कई ऐसे अभियान चलाए जा रहे हैं जिससे आतंकियों का नामोनिशान मिट जाए. ऐसे ही जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम घने अखल वन क्षेत्र में ऑपरेशन अखल चला रही है, इस हाईटेक ऑपरेशन के तहत जंगलों में आतंकियों का ठिकाना मिला है. जवानों को छठे दिन मिली यह काफी बड़ी सफलता मानी जा रही है.
जवानों को घने जंगलों में रसद और उपकरण मिले हैं. जो इस बात का संकेत देते हैं कि यह आतंकी ठिकाना है. यह ठिकाना घने अखल जंगल में स्थित था, जो प्राकृतिक आड़ प्रदान करता था, जिससे यह आतंकवादियों के लिए छिपे हुए ठिकाने स्थापित करने के लिए एक आदर्श स्थान बन गया. ऑपरेशन अखल, अब एक तकनीकी आतंकवाद विरोधी अभियान में बदल गया है, जिसमें सुरक्षा बल जमीनी बलों के संयुक्त प्रयासों का समर्थन करने के लिए उन्नत आधुनिक निगरानी तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं. दिन भर रुक-रुक कर और तेज गोलीबारी और विस्फोटों की सूचना मिली, जिसमें रात भर गोलीबारी और कभी-कभार विस्फोट भी शामिल हैं.
ऑपरेशन में शामिल सभी बलों के लगभग 1500 जवानों ने 8 किलोमीटर के वन क्षेत्र की घेराबंदी कर ली है और छिपे हुए आतंकवादी को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. अब तक 3 आतंकवादी मारे गए हैं, लेकिन आधिकारिक पुष्टि केवल एक आतंकवादी के मारे जाने की है. उसका शव भी बरामद कर लिया गया है.
इसके अलावा, 6 जवान घायल हैं और सभी की हालत स्थिर है. जम्मू-कश्मीर के जंगल पिछले 4 सालों से आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह माने जाते रहे हैं, जहां उन्होंने अपने पक्के ठिकाने बना लिए थे. हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी समूहों ने अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव किया है और अपने अभियानों के लिए जंगली और पहाड़ी इलाकों का इस्तेमाल तेज़ी से कर रहे हैं.
यह सब अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण और उसके बाद आतंकवाद विरोधी अभियानों में तेज़ी के बाद हुआ है, जिसने आतंकवादी नेटवर्क और उसके तंत्र को तहस-नहस कर दिया है. भारतीय सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा लगातार आतंकवाद विरोधी अभियानों ने शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में पारंपरिक आतंकवादी नेटवर्क को तहस-नहस कर दिया है. इससे आतंकवादियों को पता लगने और उन्हें बेअसर करने से बचने के लिए दूरदराज के जंगली इलाकों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
घने जंगलों में प्राकृतिक आड़, उन्नत हथियारों और गुरिल्ला रणनीति के बल पर, लश्कर, जैश, हिजबुल मुजाहिदीन और टीआरएफ जैसे समूह स्थानीय समर्थन में गिरावट और सुरक्षा प्रयासों में तेज़ी के बावजूद अपने अभियानों को जारी रखने का लक्ष्य रखते हैं. खुफिया रिपोर्टों से स्थानीय भर्ती में उल्लेखनीय गिरावट का संकेत मिलता है, 2025 में केवल चार स्थानीय आतंकवादी आतंकवादी समूहों में शामिल होंगे. इसने आतंकवादी समूहों को पाकिस्तानी नागरिकों पर अधिक निर्भर होने के लिए प्रेरित किया है, जो अक्सर युद्ध में अनुभवी और गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित होते हैं, जिससे जंगली इलाके उनके अभियानों के लिए एक रणनीतिक विकल्प बन गए हैं. पिछले चार वर्षों से, जंगल में छिपे इन इलाकों ने कई बड़े आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया है.
हाल ही में किए गए आतंकवाद विरोधी अभियानों से संकेत मिलता है कि सुरक्षा बल जम्मू-कश्मीर के घने जंगलों में आतंकवाद विरोधी अभियानों की ओर रुख कर रहे हैं. सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया का एक प्रमुख उदाहरण है, श्रीनगर के पास दाचीगाम के जंगलों में चलाए गए अभियान में तीन आतंकवादी मारे गए. अरागाम वन क्षेत्र में दो आतंकवादी मारे गए. जबकि सुरक्षा बलों ने लोलाब जंगल में एक जैश-ए-मोहम्मद मॉड्यूल को निष्क्रिय कर दिया, जिससे आईईडी बनाने की सामग्री और रात्रि-दर्शन उपकरण बरामद हुए. जनवरी 2025 से अब तक, जंगल-आधारित अभियानों में 40 से ज़्यादा आतंकवादी मारे जा चुके हैं, जिनमें से 15 मुठभेड़ें अकेले जम्मू क्षेत्र में, खासकर डोडा, किश्तवाड़ और उधमपुर के जंगलों में हुई हैं. पिछले दो महीनों में कश्मीर के जंगलों में ऑपरेशन महादेव, ऑपरेशन शिव शक्ति और अब चल रहे ऑपरेशन अकाल जैसे कुछ बड़े ऑपरेशन किए गए हैं.
सुरक्षा बलों ने जंगल-आधारित ख़तरे का मुक़ाबला करने के लिए अपने तरीक़े में बदलाव किया है. थर्मल इमेजिंग और नाइट-विज़न क्षमताओं वाले उच्च-ऊंचाई वाले ड्रोन तैनात किए गए हैं. बैसरन घाटी और पीर पंजाल पर्वतमाला, दाचीगाम और शमसावारी जैसे जंगली इलाकों में आतंकवादियों के रास्तों पर नजर रखने के लिए सैटेलाइट इमेजरी. सैटेलाइट फोन सिग्नलों का पता लगाने के लिए संचार पैटर्न का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)-की मदद ली जा रही है. सेना पैरा कमांडो और कोबरा बटालियन की तैनाती, पुलिस के एसओजी को जंगल युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया गया जाना ज़ाहिर करता है कि जंगलों में अब आतंकियों की खैर नहीं है, ऑपरेशन अखल जिस तरह से चलाया जा रहा है, उससे पता चलता है कि सुरक्षा बल अब जम्मू-कश्मीर के जंगलों में छिपे आतंकवादियों और उनके ठिकानों का सफाया करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.
ऑपरेशन अखल लगभग 1500 जवानों द्वारा चलाया जाता है, जिनमें 650 सेना और बाकी पुलिस व सीआरपीएफ के जवान शामिल हैं. इनमें पैरा कमांडो, सेना की राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर), जम्मू-कश्मीर पुलिस की एसओजी और सीआरपीएफ शामिल हैं. ये सभी जवान जंगल युद्ध में उच्च प्रशिक्षित हैं और नवीनतम अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं. भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर में अभियानों के लिए आधुनिक शस्त्रागार के रूप में 7.62 मिमी नेगेव एलएमजी (इज़राइल निर्मित) के साथ एलएमजी भी रखती है.