कोलकाता : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आने वाले वर्षों के लिए अपनी सबसे महत्वाकांक्षी योजनाएं सामने रखी हैं। एजेंसी न केवल 2028 में चंद्रयान-4 भेजने की तैयारी कर रही है, बल्कि बढ़ती मांग के अनुरूप स्पेसक्राफ्ट उत्पादन क्षमता को अगले तीन वर्षों में तीन गुना करने की दिशा में भी तेज काम कर रही है।
इसरो प्रमुख वी. नारायणन ने कहा कि संगठन इस वित्त वर्ष में सात और प्रक्षेपण करेगा और मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ 2027 में अपने तय कार्यक्रम के अनुसार भेजा जाएगा। इनमें एक वाणिज्यिक संचार उपग्रह, कई पीएसएलवी तथा जीएसएलवी मिशन शामिल हैं। इस दौरान स्वदेशी निर्मित पहला पीएसएलवी भी प्रक्षेपित किया जाएगा, जो भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी के नए चरण की शुरुआत करेगा।
उन्होंने बताया कि सरकार ने चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी दे दी है। यह भारत का पहला ‘लूनर सैंपल रिटर्न’ मिशन होगा, जो चंद्रमा से नमूने लाकर धरती पर भेजने का प्रयास करेगा। यह क्षमता अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ने ही प्रदर्शित की है। इसके समानांतर, जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के साथ संयुक्त मिशन लूपेक्स पर भी काम जारी है, जो चंद्र दक्षिणी ध्रुव पर जल-बर्फ की मौजूदगी का अध्ययन करेगा।
इसरो भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। नारायणन ने बताया कि 2035 तक स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है और इसका पहला मॉड्यूल 2028 में कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा। गगनयान मिशन को लेकर उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल मानवरहित परीक्षणों की टाइमलाइन बदली है, जबकि मानवयुक्त मिशन हमेशा 2027 के लिए ही तय था। तीन मानवरहित उड़ानें इस मिशन से पहले होंगी।
नारायणन ने कहा कि अंतरिक्ष-क्षेत्र के सुधारों के बाद निजी हिस्सेदारी में तेज वृद्धि हुई है। आज 450 से अधिक उद्योग और 330 से ज्यादा स्टार्टअप सक्रिय हैं। भारत का स्पेस इकोनॉमी बाजार 8.2 अरब डॉलर का है, जिसे 2030 तक 8% वैश्विक हिस्सेदारी तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
