मुंबई : पुणे की एक स्पेशल कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि वे किसी भी न्यायिक आदेश पर टिप्पणी नहीं कर सकते, खासकर उन आदेशों पर जिन्हें वे चुनौती नहीं दे पाए हैं या जो अंतिम रूप से पारित कर दिए गए हैं। वी डी सावरकर पर कथित टिप्पणी को लेकर चल रहे मानहानि मामले में अदालत ने यह निर्देश जारी किया है। कोर्ट ने साफ कहा कि आदेश या तो स्वीकार करना होगा या फिर उचित अदालत में चुनौती देनी होगी।
यह मामला मार्च 2023 में लंदन में राहुल गांधी के एक कथित बयान से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि वी डी सावरकर ने अपनी किताब में लिखा है कि वे और उनके कुछ साथियों ने एक मुस्लिम व्यक्ति को पीटा था। इसे लेकर सावरकर के प्रपौत्र सत्यकि सावरकर ने मानहानि का मामला दर्ज कराया है। सत्यकि का आरोप है कि ऐसा कोई प्रसंग न सावरकर ने लिखा और न ही कभी हुआ।
सुनवाई के दौरान राहुल गांधी के वकील मिलिंद पवार ने एक आवेदन दायर कर कहा कि 2023 में जारी समन “उचित साक्ष्यों के आधार पर नहीं” बल्कि “अनुचित दबाव और जल्दबाजी के माहौल” में जारी किया गया था। इस पर सत्यकि की ओर से वकील संग्राम कोल्हटकर ने कड़ा विरोध जताया और कहा कि कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाना अनुचित है। स्पेशल जज अमोल एस. शिंदे ने भी माना कि आवेदन से अदालत की कार्यशैली पर संदेह पैदा होता है।
जज शिंदे ने कहा कि यदि राहुल गांधी को समन जारी करने के आदेश से कोई आपत्ति थी, तो उन्हें उस आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती देनी चाहिए थी। उन्होंने निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में टिप्पणी करके अदालत के आदेशों को कटघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता। अदालत ने कहा कि या तो आदेश स्वीकार करें या चुनौती दें, पर कोर्ट के अंतिम या अप्रतिवादित आदेश पर टिप्पणी नहीं करेंगे।
सत्यकि सावरकर ने अदालत में कहा कि राहुल गांधी द्वारा दिया गया बयान तथ्यहीन है और इससे उनके परिवार और वी डी सावरकर की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। उन्होंने दावा किया कि गांधी ने जानबूझकर गलत बयान दिया, जिससे समाज में गलत संदेश गया। शिकायतकर्ता के अनुसार, सावरकर ने कभी भी ऐसा बयान या विवरण अपनी किसी भी किताब में नहीं लिखा।
समन जारी करने को लेकर राहुल गांधी की आपत्ति खारिज करते हुए कोर्ट ने साफ संकेत दिया कि अब मामले की सुनवाई आरोपों के आधार पर आगे बढ़ेगी। कोर्ट का निर्देश आरोपित की टिप्पणियों पर रोक लगाने से जुड़े न्यायिक दायरे को भी स्पष्ट करता है। अब अगली सुनवाई में अदालत मानहानि मामले से जुड़े साक्ष्यों और गवाहियों पर आगे विचार करेगी। इस बीच, अदालत का यह निर्देश राजनीतिक हलकों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
