खूबसूरती में देती थी ऐश्वर्या को टक्कर, अब बौद्ध भिक्षु बनकर चुना संन्यासी जीवन

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मुंबई : बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया हर किसी को अपनी ओर खींचती है, ग्लैमर, शोहरत और फैंस का प्यार जीवन के हर रंग को बदल देता है। ग्लैमर की इस दुनिया में कई कलाकार ऐसे भी होते हैं जो इस जगमगाती दुनिया के बीच भी भीतर की रोशनी तलाशते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही अभिनेत्री की कहानी बताएंगे, जिन्होंने न सिर्फ ग्लैमर की जिंदगी को खुद की मर्जी से अलविदा कहा, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री को पूरी तरह छोड़कर धर्म और साधना का रास्ता चुन लिया। कभी रेड कार्पेट पर चलने वाली ये एक्ट्रेस आज संयम, मौन और आत्मिक शांति से भरी जिंदगी जी रही हैं। उन्होंने ऐसा रास्ता चुना जिसे देखना तो आसान है, लेकिन जीना हर किसी के बस की बात नहीं। हम जिस एक्ट्रेस की बात कर रहे हैं ये कोई और नहीं बल्कि बरखा मदान हैं।

कभी रैंप की चकाचौंध में कदम रखने वाली एक लड़की, जिसने मिस इंडिया जैसे मंच पर सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय जैसी सुंदरियों के साथ शिरकत की, आज पहाड़ों में ध्यानमग्न जीवन जी रही है। ये कहानी है बरखा मदान की है, एक ऐसी महिला जिसने ग्लैमर की दुनिया को पीछे छोड़, आत्मिक शांति की राह चुनी। बरखा मदान का जीवन शुरुआत से ही असाधारण रहा। 1994 में मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लिया, जहां उन्हें ‘मिस टूरिज्म इंडिया’ का खिताब मिला और मलेशिया में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता में उन्होंने तीसरा स्थान हासिल किया। वह एक उभरती हुई मॉडल थीं और आत्मविश्वास उनमें भरा हुआ था।

इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड का रुख किया। 1996 में आई सुपरहिट फिल्म ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ में उन्होंने अक्षय कुमार, रेखा और रवीना टंडन के साथ स्क्रीन साझा की। फिर 2003 में राम गोपाल वर्मा की ‘भूत’ में उनका किरदार ‘मंजीत’ ऐसा था जिसने दर्शकों को कंपकंपा दिया। टीवी की दुनिया में भी वे नजर आईं। ‘न्याय’, ‘1857 क्रांति’ (जहाँ उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका निभाई), और ‘सात फेरे’ जैसे लोकप्रिय शोज में उन्होंने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। एक ओर उनका करियर ग्राफ सुधर रहा था, दूसरी ओर उनका मन बोझिल था।

बाहर की दुनिया में जितनी सफलता, उतनी ही भीतर एक अनकही बेचैनी। बरखा एक सवाल से बार-बार टकरा रही थीं, ‘क्या सिर्फ यहीं तक है जीवन?’ सितारों के बीच रहते हुए भी वह खुद को अकेला महसूस करती थीं। वह उस खालीपन को भरने की कोशिश कर रही थीं, जिसे न शोहरत भर सकती थी, न ही पैसा। यहीं से उन्होंने अपनी आत्मा की आवाज सुननी शुरू की। बरखा पहले से ही दलाई लामा की शिक्षाओं से प्रभावित थीं। धीरे-धीरे, किताबों के शब्द उनके भीतर उतरते गए। वे महज पढ़ नहीं रहीं थीं, वो अंदर से बदल रही थीं।

2012 में बरखा मदान ने वह फैसला किया जो बहुत कम लोग ले पाते हैं। उन्होंने मायानगरी को अलविदा कहा और बौद्ध भिक्षु बनने का रास्ता चुना। अपने पुराने जीवन और पहचान को पीछे छोड़ते हुए, उन्होंने नया नाम धारण किया ग्यालटेन समतेन। यह केवल नाम का परिवर्तन नहीं था, यह उनके पूरे जीवन की दिशा बदलने वाला कदम था। अब वे हिमालय की शांत वादियों में रहती हैं, जहां न स्क्रिप्ट होती है, न डायलॉग, न कैमरे, सिर्फ ध्यान, सेवा और आत्म-अन्वेषण का मार्ग।

जो महिला कभी रैंप पर रोशनी में नहाई होती थी, जो सिल्वर स्क्रीन पर डर पैदा कर सकती थी, अब वही महिला बौद्ध परंपराओं की शरण में जा चुकी है। ग्यालटेन समतेन अब साधारण जीवन जीती हैं, न उन्हें रंग-रूप का मोह और न सामाजिक तामझाम से जुड़ी है। उन्होंने मेकअप, रंगीन कपड़े और हर तरह की लग्जरी से खुद को पूरी तरह दूर कर लिया है। उनकी वो बौद्ध भिक्षुओं वाले परिधानों में ही नजर आती हैं। सोशल मीडिया पर वो काफी एक्टिंव हैं, जहां वो लाइफ अपडेट के साथ ही लोग को बौद्ध धर्म के बारे में जारूक करती हैं। वो कई बार दलाई लामा से भी मिल चुकी हैं।