नई दिल्ली : प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए दिल्ली सरकार ने कृत्रिम बारिश का सफल परीक्षण किया, लेकिन बारिश नहीं हुई। इस पर दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया है कि आईएमडी द्वारा पूर्वानुमानित नमी की मात्रा 10-15 प्रतिशत कम थी, जो क्लाउड सीडिंग के लिए आदर्श नहीं है। साथ ही बताया कि दिल्ली में क्लाउड सीडिंग परीक्षणों से उन स्थानों पर पार्टिकुलेट मैटर को कम करने में मदद मिली, जहां यह प्रक्रिया की गई थी। क्लाउड सीडिंग परीक्षण के बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा में वर्षा की दो घटनाएं दर्ज की गईं।
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि कानपुर से आए सेसना विमान ने बुराड़ी, करोलबाग उत्तर और मयूर विहार जैसे क्षेत्रों में क्लाउड सीडिंग की। राजधानी दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का यह दूसरा ट्रायल था। बादलों में आठ फ्लेयर्स छोड़े गए, जिनका वजन दो से ढाई किलो था। यह प्रक्रिया लगभग आधे घंटे तक चली। फ्लेयर (सीडिंग का घोल जिसके जरिये छिड़का गया) का प्रभाव करीब 17 से 18 मिनट तक रहा।
उन्होंने बताया कि आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों के अनुसार इस परीक्षण के बाद 15 मिनट से लेकर 4 घंटे के भीतर हल्की बारिश हो सकती है, हालांकि नमी का स्तर केवल 15 से 20 प्रतिशत होने से भारी वर्षा की संभावना नहीं है। मंत्री ने कहा कि मौसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस समय हवा का रुख उत्तर दिशा में है, इसलिए उन्हीं इलाकों में प्रयोग किए गए। दिल्ली सरकार ने 25 सितंबर को आईआईटी कानपुर से एक समझौता किया था। इसके मुताबिक उत्तर पश्चिमी दिल्ली में पांच कृत्रिम बारिश के परीक्षण किए जाएंगे। दिल्ली कैबिनेट ने इस साल 7 मई को 3.21 करोड़ रुपये की लागत से पांच क्लाउड सीडिंग की मंजूरी दी थी।
दिल्ली में दिवाली के बाद से प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। ऐसे में राज्य सरकार ने दिल्ली में बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग कराने का फैसला किया था। मंत्री सिरसा ने कहा कि यह प्रदूषण कम करने की दिशा में सरकार का एक बड़ा कदम है। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो फरवरी तक इसके दीर्घकालिक क्रियान्वयन की योजना बनाई जाएगी। यह देश में प्रदूषण नियंत्रण के लिए वैज्ञानिक तरीके से किया गया पहला प्रयास होगा।
कृत्रिम बारिश दरअसल एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, नमक या अन्य रासायनिक कणों का छिड़काव किया जाता है। इससे बादलों में मौजूद नमी बूंदों या बर्फ के कणों के रूप में एकत्रित हो जाती है और जब ये कण भारी हो जाते हैं, तो बारिश के रूप में जमीन पर गिरते हैं। इसी पद्धति को कृत्रिम बारिश कहते हैं। दिल्ली में इस बारिश का प्रयोग प्रदूषण को कम करने के लिए किया जा रहा है।
आईआईटी कानपुर की टीम ने दिल्ली के ऊपर लगभग 25 नौटिकल मील लंबे और 4 नौटिकल मील चौड़े क्षेत्र में यह ऑपरेशन किया। पहले चरण में 4,000 फीट की ऊंचाई पर छह जबकि दूसरे चरण में 5,000 से 6,000 फीट की ऊंचाई पर आठ फ्लेयर्स छोड़े गए।
सिरसा ने दूसरे प्रयोग के बाद सोशल मीडिया पर लिखा, यदि ये परीक्षण सफल रहे, तो दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा। यह परीक्षण दिल्ली सरकार की उस व्यापक योजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य सर्दियों के महीनों में वायु गुणवत्ता में सुधार लाना है।
