धनबाद (राजीव सिन्हा) : झारखंड में धनबाद शहर के स्टेशन रोड में सैयद हजरत हसन अली शाह एवं हजरत सैयद जलाल शाह का ऐतिहासिक मजार-मस्जिद अवस्थित है। जो वर्ष 1958 से पूर्व का बताया जाता है। इस धार्मिक स्थल पर विभिन्न समुदाय व आस्था वाले लोग अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं। इसे कोयलांचल में रूहानियत, अकीदत और सामाजिक एकता का केंद्र माना जाता रहा है। वर्तमान में भी झारखंड के विभिन्न समुदाय के लोगों की आस्था और भावना इससे जुड़ी हुई है। इनके महत्व की वजह से प्रशासनिक-पुलिस महकमा द्वारा भी धार्मिक आयोजनों और कार्यक्रमों में पूरी नेकदिली के साथ विभाग की उपस्थिति दर्ज कराई जाती रही है।
क्या होता है मजार-दरगाह? : इसका धार्मिक महत्व होता है और लोग यहां ज़ियारत (दर्शन) करने आते हैं। मज़ार एक तरह से मजहबी जगह होती है, जहां किसी सूफ़ी संत, वली, पीर या किसी खास शख्स की कब्र होती है। यह जगहें मुसलमानों में रूहानी अकीदत और ईमान का सेंटर माना जाता है। मजारों पर जायरीन फूल, इत्र और चादर चढ़ाते हैं और फातिहा पढ़ते हैं।
क्या होता है मजार-दरगाह इबादत? : मजार इबादत का मतलब किसी संत या धार्मिक व्यक्ति की कब्र (मकबरा) पर जाकर उनकी रूहानी शांति और अल्लाह की इबादत करना है, जहाँ लोग अपनी मुरादें (इच्छाएं) पूरी करने और दुआएं मांगने के लिए जाते हैं। इसे मकबरा, दरगाह या मकाम भी कहते हैं।
क्या है इबादत का तरीका : विभिन्न समुदाय से जुड़े लोग लोग मजार पर जाकर इबादत करते हैं, दुआएं मांगते हैं, और अपने मन की मुरादें पूरी होने की प्रार्थना करते हैं। यहां नमाज़ पढ़ी जाती है, कुरान की तिलावत होती है, और ज़िक्र (अल्लाह का स्मरण) किया जाता है। कई मजारें ऐसी होती हैं जहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग एक साथ इबादत करते हैं, जो गंगा-जमुनी तहजीब (सांस्कृतिक मेलजोल) का प्रतीक कहा जाता है।
क्या है मजार का महत्व : ये सूफी तालीम और रूहानी तरक्की के मरकज़ (केंद्र) होते हैं। ये सामाजिक एकता और मजहबी अकीदत (धार्मिक श्रद्धा) की निशानी भी कही जाती हैं।
