धनबाद : रेलवे के स्वर्णिम इतिहास से जुड़े महत्वपूर्ण धरोहर बरमसिया स्थित कोचिंग यार्ड के हेरिटेज पार्क में हैं। जो धनबाद रेल के गौरव में चार-चांद लगा रहा था। धनबाद रेलवे ने इन अनमोल धरोहरों को संग्रहित कर कोचिंग यार्ड में इसे संग्रहालय के रूप में संजो रखा है।
परन्तु…यह दुर्भाग्य है कि वर्तमान समय में रेल अधिकारियों की लापरवाही और मनमानी तथा उपेक्षा ने इसे झाड़-फूस के पार्क के रूप में तब्दील कर दिया है। जिससे इसके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। हेरिटेज पार्क की उपेक्षा इसे बदहाली की गर्त में डुबोता जा रहा है। समय रहते रेल प्रबंधन को इस ओर ध्यान देते हुए गंभीर कदम उठाने होंगे। जिससे हेरिटेज पार्क का अस्तित्व बरक़रार रह सके और लोगों को भारतीय रेल के स्वर्णिम इतिहास से जुड़ी जानकारी मिलती रहे।
हेरिटेज पार्क में रेलवे की ओर से नैरो गेज पर चलने वाला पहला कोच, इंजन, हैंड क्रेन, बसनुमा ट्रेन आदि जुड़े धरोहरों को प्रदर्शित किया है। इन धरोहर को देखने का अनुभव झारखंड के लोगों के लिए बिल्कुल नया है। हेरिटेज पार्क में प्रवेश पूरी तरह नि:शुल्क है।
बसनुमा ट्रेन : यह सफेद और हरा रंग का बसनुमा ट्रेन पहले विश्व युद्ध के दौरान 29 सितंबर 1917 को रेल पटरी पर उतरी थी। ट्रेन का परिचालन पश्चिम बंगाल के अहमदपुर से कटवा के बीच नैरो गेज पर शुरू हुआ। ट्रेन का भार 5.9 टन है। कुल 20 यात्री इस ट्रेन में बैठ सफर कर सकते हैं। इस लोको मोटर कोच के परिचालन का श्रेय लंदन की मैक्लॉड रसल एंड कंपनी की इकाई मैक्लॉड लाइट रेलवे को जाता है। आजादी के वर्षों बाद तक कंपनी के अधीन ट्रेन का परिचालन जारी रहा। 1967 को दक्षिण पूर्व रेलवे और एमएलआर का विलय हुआ। बड़ी लाइन का निर्माण पूरा होते ही 14 जनवरी 2013 को इस ट्रेन का अस्तित्व समाप्त हो गया।
नैरोगेज इंजन जेडडीएम5 525 : इस छोटी लाइन के रेल इंजन का निर्माण चितरंजन रेल कारखाने में किया गया था। कटवा रेलखंड नैरो गेज पर पहली बार इसका परिचालन शुरू हुआ था। करीब 100 साल रेलवे को अपनी सेवा देने के बाद बड़ी रेल लाइन के निर्माण के साथ इसकी उपयोगिता समाप्त हो गई। 2017 में यह इंजन धनबाद रेल मंडल में लाया गया।
हैंड क्रेन 3 : इस हैंड क्रेन को हावड़ा डिविजन के रामपुरहाट डिपो में वर्ष 1966 में लाया गया। इस क्रेन का उपयोग रामपुरहाट डिपो में रेनो गेज व्हील के लोडिंग, अनलोडिंग में किया जाता था। क्रेन की खासियत यह है कि इसे गियर और पिनियन के जरिए मैनुअली ऑपरेट किया जाता था। इस क्रेन के भार उठाने की क्षमता 2.5 टन है। नैरोगेज ट्रेन के बंद होने के साथ इसका इस्तेमाल भी रुक गया। 2016 में क्रेन को धनबाद कोचिंग यार्ड लाया गया।
वेगनएसई 108 : यह रांची-लोहरदगा नैरोगेज रेल मार्ग में चलने वाले अंतिम वैगन है। इसका निर्माण 1923 में बर्न एण्ड कंपनी लिमिटेड ने किया था। इस वैगन की ऊपरी छत दोनों ओर से ढाल है, जो अपने आप में अद्भुत है। वैगन के जरिए लोहरदगा माइंस से बॉक्साइट, एल्यूमीनियम फैक्ट्री तक ढोया जाता था। 2016 में इसे धनबाद लाया गया था।
नैरो गेज कोच 225 : इस कोच का परिचालन पश्चिम बंगाल के कटवा-बर्दवान के बीच नैरो गेज पटरी पर हुआ करता था। कोच का कुल भार 9.3 टन है। यात्रियों के बैठने के लिए कुल 44 सीट हुआ करती थी। इसकी बॉडी के अंदर से लकड़ी और बाहर से एल्यूमीनियम सीट से बनी हुई है।
कोच की रफ्तार 15 घंटे प्रति किलोमीटर का था। पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह ट्रेन उस दौरान आवागमन का महत्वपूर्ण विकल्प था। बड़ी लाइन में परिवर्तन के उपरांत इसे 9.6.2011 को रेल सेवा से निवृत्त कर हावड़ा में रखा गया। 2017 में कोच को धनबाद रेल मंडल लाया गया था। रिपोर्ट : अमन्य सुरेश (8340184438)