जस्टिस सूर्यकांत आज बनेंगे 53वें सीजेआई, निवर्तमान CJI गवई बोले- कोई सरकारी पद नहीं लूंगा

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नई दिल्ली : जस्टिस सूर्यकांत सोमवार को देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ लेंगे। वह जस्टिस बीआर गवई की जगह लेंगे। जस्टिस सूर्यकांत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने, बिहार मतदाता सूची समीक्षा व पेगासस स्पाइवेयर केस जैसे कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे हैं। वह 9 फरवरी, 2027 को सेवानिवृत्त होंगे। बतौर सीजेआई उनका कार्यकाल करीब 15 माह का होगा।

निवर्तमान सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई सरकारी पद नहीं लेंगे। उन्होंने जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली का पुरजोर बचाव किया। निवर्तमान सीजेआई ने अपने कार्यकाल के दौरान किसी महिला जज की नियुक्ति न करने पर अफसोस जताया। 

अपने कार्यकाल के आखिरी दिन, निवर्तमान सीजेआई जस्टिस गवई ने लगभग सभी जरूरी मुद्दों पर बात की। जिसमें जूता फेंकने की घटना, न्यायपालिका में लंबित मामले, राष्ट्रपति संदर्भ पर उनके फैसले की आलोचना, अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर को आरक्षण के फायदों से बाहर रखने जैसे विषय शामिल हैं। 

उन्होंने कहा, मैंने कार्यभार संभालने के साथ ही साफ कर दिया था कि मैं सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी आधिकारिक काम नहीं लूंगा। अगले 9-10 दिनों के लिए आराम का वक्त, उसके बाद, एक नई पारी।

यहां अपने सरकारी आवास पर मीडिया से अनौपचारिक बातचीत के दौरान उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने में मदद करती है। उन्होंने स्वीकार किया कि कोई भी व्यवस्था परिपूर्ण नहीं होती।
इस बात की आलोचना होती है कि न्यायाधीश स्वयं अपनी नियुक्ति करते हैं। लेकिन इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है। हम खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट और कार्यपालिका के विचारों पर भी गौर करते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय कॉलेजियम का ही होता है। 

जूता फेंकने को लेकर जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा करने वाले वकील को माफ क्यों किया, तो निवर्तमान सीजेआई ने कहा, मुझे लगता है कि यह फैसला मैंने अपने आप लिया था, शायद बचपन में बनी सोच की वजह से। मुझे लगा कि सही यही होगा कि मैं मामले को नजरअंदाज कर दूं।

उन्होंने अनुसूचित जाति (एससी) के लिए भी आरक्षण में भी क्रीमी लेयर की व्यवस्था लागू करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इससे आरक्षण का फायदा उन लोगों तक पहुंचने में मदद मिलेगी, जिनको इसकी बहुत जरूरत है। इसके बिना आरक्षण का फायदा पीढ़ियों तक कुछ ही परिवारों को मिलता रहेगा। जिससे एक वर्ग के अंदर एक और वर्ग बन जाएगा। हालांकि, उन्होंने साफ किया कि इस मुद्दे पर आखिरी फैसला कार्यपालिका और संसद को लेना है।

सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि सोशल मीडिया आजकल समस्या हो गई है। हम जो नहीं बोलते हैं, वह भी लिखा और दिखाया जाता है। लेकिन यह केवल न्यायपालिका के लिए समस्या नहीं, इससे सरकार के बाकी अंग भी प्रभावित हैं।

राष्ट्रपति संदर्भ पर हाल ही में दिए गए फैसले पर उन्होंने कहा न्यायालय संविधान में शब्द नहीं जोड़ सकता, इसलिए राष्ट्रपति या राज्यपालों के लिए समय सीमा तय नहीं कर सकता। फैसले को संतुलित बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोककर नहीं रख सकते। राज्य अत्यधिक देरी की स्थिति में उपाय अपना सकते हैं।