नई दिल्ली : हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर जितिया व्रत किया जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका और जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व अधिक उत्साह के साथ 3 दिनों तक मनाया जाता है। शुभ अवसर पर महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और इस व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। वहीं, इसका समापन व्रत का पारण करने के बाद होता है।
इसलिए किया जाता है जितिया व्रत : जितिया व्रत विवाहित महिलाएं संतान सुख की प्राप्ति के लिए रखती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। व्रत करने से भगवान श्रीकृष्ण संतान की सदैव रक्षा करते हैं। इसके अलावा संतान से जुड़ी सभी तरह की समस्या दूर होती है।
जितिया नहाय खाय कब है : जितिया का नहाय खाय आश्विन कृष्ण सप्तमी तिथि में किया जाता है। इस साल 23 सितंबर को दोपहर 2 बजे के बाद से सप्तमी तिथि लग रही है। जबकि अष्टमी तिथि 24 तारीख को दोपहर बाद लग जाएगी। इसलिए शास्त्र पुराण के मतों के अनुसार 23 सितंबर दिन सोमवार को जितिया का नहाय खाय किया जा रहा है। इसमें महिलाएं नदी, तालाब में स्नान करके तेल, सरसों तेल की खल, झिमनी के पत्तों पर रखकर भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। इस तेल को अपनी संतान के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप लगाती है।
जितिया पर बन रहा ये योग : इस बार जितिया व्रत 2024 के दिन वरीयान योग और आर्द्रा नक्षत्र बन रहा है. व्रत के दिन यह योग प्रात:काल से लेकर देर रात 12:18 बजे तक रहेगा. इसके बाद परिघ योग होगा. वहीं आर्द्रा नक्षत्र प्रात:काल से लेकर रात 10:23 बजे तक है, उसके बाद पुनर्वसु नक्षत्र है. वरीयान योग में आप कोई भी मांगलिक कार्य कर सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र में इसे बेहद शुभ फलदायी माना गया है. ऐसे में इस दिन पूजा करने से महिलाओं को व्रत का दोगुना लाभ मिलेगा.
जितिया पर किस देवता की होती पूजा : जितिया व्रत पूरे दिन और पूरी रात निर्जला उपवास रखने का विधान है. इस दिन गंधर्व राजा जीमूतवाहन की पूजा करने की परंपरा है. पौराणिक कथा के अनुसार, राजा जीमूतवाहन ने अपने साहस और सूझबूझ से एक मां के बेटे को जीवनदान दिलाया था. तभी से उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाने लगा.
जितिया ओठगन कब है : जितिया का ओठन 24 तारीख को सूर्योदय से 2 घंटे पूर्व करना शास्त्र संम्मत होगा। ओठगन में व्रती महिलाओं चूड़ा दही, अथवा अन्य रुचि का भोजन करती हैं। और दरवाजे से शरीर को टिकाकर यानी ओठंगकर पानी पीती हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे भाइयों को भी दीर्घायु की प्राप्ति होती है। ओठगन के बाद से व्रती महिलाओं का निर्जला व्रत आरंभ होगा।