मां कालरात्रि : आज नवरात्री का सातवां दिन…बुरी शक्तियों का नाश, अकाल मृत्यु का भय नहीं 

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नई दिल्ली : नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के मां कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि देवी के इस रूप की आराधना करने से साधक बुरी शक्तियों से दूर रहते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। यह भी माना जाता है कि इनकी पूजा करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

मां कालरात्रि पूजा विधि : देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप की पूजा सुबह और रात्रि दोनों समय की जाती है। इनकी आराधना करने से पहले देवी काली की प्रतिमा के आसपास गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद घी का दीपक जलाएं। फिर आप रोली, अक्षत, गुड़हल का फूल माता की तस्वीर के सामने अर्पित करें। अंत में आप पूरे परिवार के साथ कपूर या दीपक से माता की आरती करें और जयकारे लगाएं। आप सुबह शाम आरती करने के साथ दुर्गा चालीसा या सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं।इसके अलावा आप मां कालरात्रि की रुद्राक्ष की माला से मंत्रों का जाप करें। यह भी बहुत फलदायी होता है।

मां कालरात्रि को क्या लगाएं भोग : मां कालरात्रि को गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाएं. यह माता को बहुत प्रिय है।

ऐसे हुआ माता कालरात्रि का प्राकट्य : असुर शुंभ निशुंभ और रक्तबीज ने सभी लोगों में हाहाकार मचाकर रखा था, इससे परेशान होकर सभी देवता भोलेनाथ के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। भोलेनाथ की बात मानकर माता पार्वती ने मां दुर्गा का स्वरूप धारण कर शुभ व निशुंभ दैत्यों का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज का भी अंत कर दिया तो उसके रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर मां दुर्गा का अत्यंत क्रोध आ गया। क्रोध की वजह से मां का वर्ण श्यामल हो गया। इसी श्यामल रूप को से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज समेत सभी दैत्यों का वध कर दिया और उनके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया। इस तरह सभी असुरों का अंत हुआ। इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया।

महाविनाशक गुणों से दुष्टों और असुरों का संहार करने वाली दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि है। माता का यह स्वरूप कालिका का अवतार यानी काले रंग का है और अपने विशाल केश चारों दिशाओं में फैलाती हैं। चार भुजा वाली मां, जो वर्ण और वेश में अर्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। माता के तीन नेत्र हैं और उनकी आंखों से अग्नि की वर्षा भी होती है। मां का दाहिना उपर उठा हाथ वर मुद्रा में है तो नीचे दाहिना वाला अभय मुद्रा में। बाएं वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड़क तलवार सुशोभित है। इनकी सवारी गर्दभ यानी गधा है, जो समस्त जीव जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है।

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