नई दिल्ली : आदिशक्ति की उपासना का पावन पर्व नवरात्रि 22 सितंबर से आरंभ होने जा रहा है। नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विशेष पूजा का विधान है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां दुर्गा की साधना भक्तों को शक्ति और आत्मबल प्रदान करती हैं।
मां शैलपुत्री की आराधना करने से सांसारिक सुख और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और साधक उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
स्नान-ध्यान कर शुभ मुहूर्त में पूजा प्रारंभ करें। कलश स्थापना के बाद एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर अक्षत रखें और उस पर मां शैलपुत्री का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। गंगाजल से उनका अभिषेक करें। लाल वस्त्र, लाल फूल, लाल चंदन और लाल फल अर्पित करना विशेष रूप से फलदायी माना गया है। अंत में माता की आरती कर प्रसन्न करें।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को गाय का घी अर्पित करना अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इससे साधक को आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है। सभी रोग और व्याधियां दूर होकर शरीर निरोगी बनता है। इसके साथ ही जीवन में दीर्घायु और ऊर्जा का संचार होता है।
माता शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना गया है। पूर्व जन्म में वे राजा दक्ष की कन्या सती थीं, जिन्होंने भगवान शिव से विवाह किया था। दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने आत्मदाह कर लिया। इसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर यज्ञ ध्वस्त कर दिया और सती के शरीर को लेकर विचरण करने लगे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के 51 अंग विभक्त किए, जो शक्तिपीठ कहलाए। इसके उपरांत सती ने हिमालय के घर जन्म लेकर शैलपुत्री के रूप में अवतार लिया।