शारदीय नवरात्र@2025 : छठे दिन करें मां कात्यायनी की पूजा

Mata-Katyaeni

नई दिल्ली : दुर्गा उत्सव के पांच दिन बीत चुके हैं, शरदीय नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक माता दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों या अवतारों की पूजा-अर्चना विधिपूर्वक की जाती है.

नवरात्रि में नौ दिवसीय दुर्गा पूजा के दौरान पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांड़ा और पांचवें दिन स्कंदमाता की साधना-उपासना करने के बाद छठवें दिन कात्यायनी की स्तुति और पूजन होते हैं. यहां पर हम आपको देवी कात्यायनीक की पूजा से जुड़ी सभी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं. उनके मंत्र से लेकर पूजा विधि, कथा, भोग और आरती तक सब कुछ यहां बताएंगे.

कात्यायनी का अर्थ क्या है : नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है, जो शक्ति और साहस की प्रतीक हैं. कात्यायनी माता को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है. कात्यायनी, नारी शक्ति की प्रतिमूर्ति हैं. ये बुराई का नाश करने वाली देवी हैं.

इनकी पूजा से दुश्मनों का संहार होता है. कात्यायनी का अर्थ है अहंकार और कठोरता का नाश. कत गोत्र में उत्पन्न होने की वजह से मां को कात्यायनी कहा जाता है. देवी कात्यायनी इसलिए कहलाती हैं क्योंकि वे ऋषि कात्यायन के महान पुण्य और तेज से उत्पन्न हुई थीं.

नवरात्रि की षष्ठी तिथि की प्रमुख देवी मां कात्यायनी हैं. महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं.

मां कात्यायनी की पूजा विधि : कात्यायनी माता को पीला रंग प्रिय है. देवी मां पूजा के लिए सुबह उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें. इसके बाद आसन पर बैठ जाएं. उसके बाद चौकी पर मां कात्यायनी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें. फिर मां की प्रतिमा या चित्र को गंगा जल शुद्धिकरण करें. जल भरकर कलश चौकी पर रखें. उसी चौकी पर भगवान श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका यानी सात सिंदूर की बिंदी लगाते हुए उनकी स्थापना भी कर लें.

इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें. फिर मंत्रों द्वारा षोडशोपचार पूजा करें. मां को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी और लाल पीले फूल चढ़ाएं, इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. साथ ही दुर्गा चालीसा भी पढ़ें. उसके बाद मां का पसंदीदा भोग लगाएं. उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें. मां के मंत्रों का जाप करें और आरती करें. माता को सुगंधित पीले फूल अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं साथ ही प्रेम संबंधी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं.

मां कात्यायनी की पूजा ज्यादातर गोधुली बेला यानि शाम के समय होती. माता को प्रसन्न करने के लिए आपको पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करने चाहिए. कात्यायनी माता को शहद अतिप्रिय है, इसलिए पूजा के दौरान शहद जरूर अर्पित करें. पूजा के दौरान मन ही मन मां कात्यायनी के स्वरुप का मनन करते रहें. इसके साथ ही माता के मंत्रों का जाप करें.

मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र

चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।

मां दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी हैं. इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है. देवी मां कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है. इनकी चार भुजाएं हैं. कात्यायनी की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है. बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है.

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

मंत्र ॐ देवी कात्यायन्यै नमः

कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः

महत्व : नवरात्रि की षष्ठी तिथि को कात्यायनी की पूजा विशेष फलदाई होती है. इस दिन माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र द्वारा जागृत की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है. वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं. मां की पूजा करने से विवाह में आ रही रुकावट दूर होती है तथा सुयोग्य वर आसानी से मिलता है.

माता कात्यायनी की आरती : देवी कात्यायनी माता की विशेष कृपा पाने और जीवन में सुख, समृद्धि व शांति के लिए यह आरती अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है. नवरात्रि के दिनों में षष्ठी के दिन मां की यह आरती करने से इंसान को धन लाभ, वैभव, शांति व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती. इसके साथ ही इंसान को ज्ञान की भी प्राप्ति होती है, जिससे सफलता मिलती है. तो सब मिलकर बोलिए- माता कात्यायनी की जय.

जय जय अम्बे जय कात्यायनी।
जय जग माता जग की महारानी॥

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहावर दाती नाम पुकारा॥

कई नाम है कई धाम है।
यह स्थान भी तो सुखधाम है॥

हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी।
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥

हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मन्दिर में भगत है कहते॥

कत्यानी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की॥

झूठे मोह से छुडाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली॥

बृहस्पतिवार को पूजा करिए।
ध्यान कात्यानी का धरिये॥

हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी॥

जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

आरती करते वक्त विशेष ध्यान इस पर दें कि देवी-देवताओं की 14 बार आरती उतारना है. चार बार उनके चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से और सात बार पूरे शरीर पर से. आरती की बत्तियां 1, 5, 7 यानी विषम संख्या में ही बनाकर आरती करनी चाहिए.