नई दिल्ली : ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के सामने घुटने टेकने वाला पाकिस्तान अब अपने सिंध प्रांत के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गुप्त रूप से परमाणु सुरंगों और भूमिगत कक्षों का निर्माण कर रहा है। यह खुलासा बुधवार को जेय सिंध मुत्ताहिदा महाज (JSMM) के अध्यक्ष शाफी बुरफत द्वारा लिखे गए एक पत्र में हुआ है, जिसके बाद पाकिस्तान की नापाक हरकतों से पर्दा उठ गया है।
इस पत्र में सिंधु देश के आंदोलनकारी और सिंधी सिविल सोसाइटी समूहों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए हैं। सिंधी कार्यकर्ताओं ने भी संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) से तत्काल इस मामले की जांच का अनुरोध किया है।
बुधवार को सामने आए इस पत्र में दावा किया गया है कि सिंध प्रांत में बनाई जा रहीं ये सुरंगें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी हैं, जिनका उपयोग यूरेनियम संवर्धन, परमाणु सामग्री भंडारण या अन्य संवेदनशील प्रक्रियाओं के लिए किया जा सकता है।
विशिष्ट स्थानों का उल्लेख करते हुए पत्र में जमशोरो के उत्तर में नोरियाबाद के निकट, कमबर-शाहदादकोट क्षेत्र के आसपास और मांझर झील के पश्चिमी भाग में निर्माण कार्य का जिक्र है। इन क्षेत्रों में सैन्य गोपनीयता के कारण पहुंच प्रतिबंधित है और तेजी से भूमिगत निर्माण चल रहा है। बुरफत ने स्वतंत्र स्थानीय गवाहों के बयान, तारीखयुक्त फोटो, नक्शे और समुदाय की रिपोर्टों को सबूत के रूप में पेश किया है।
बुरफत ने चेतावनी दी है कि यदि इन असुरक्षित भूमिगत सुविधाओं में परमाणु सामग्री मौजूद है, तो रेडियोधर्मी प्रदूषण, दुर्घटना, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान और अंतरराष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा मानकों का उल्लंघन हो सकता है। सिंध की नदियों, कृषि भूमि, जैव विविधता और स्थानीय स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ सकता है, जो सीमा पार पर्यावरणीय खतरा भी पैदा करेगा।
यह आरोप पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की गहराई को उजागर करता है, जो पहले से ही वैश्विक निगरानी के दायरे में है। 2025 में पाकिस्तान के पास लगभग 170 परमाणु हथियार होने का अनुमान है, जो 200 तक बढ़ सकता है।
सिंध की स्वतंत्रता की मांग करने वाला सिंधु देश आंदोलन ने पाकिस्तान की इस गतिविधि को क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बताया है। पत्र में यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, IAEA, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) और निरस्त्रीकरण कार्यालय (UNODA) से अपील की गई है कि IAEA विशेषज्ञों की टीम तैनात कर जांच करे।
साथ ही, स्वतंत्र तथ्य-खोज मिशन गठित हो, जिसमें यूएन पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) भी शामिल हो। स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और रेडियोलॉजिकल घटनाओं के लिए पूर्वानुमान योजना की मांग भी की गई है।
पाकिस्तान की यह तैयारी ऐसे समय में सामने आई है, जब पाक को दोबारा भारत के हमले का डर सता रहा है। सिंधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह गतिविधि स्थानीय समुदायों के अधिकारों का हनन है। वैश्विक समुदाय अब इंतजार कर रहा है कि क्या IAEA जैसी संस्थाएं हस्तक्षेप करेंगी, वरना यह दक्षिण एशिया में नई अस्थिरता का कारण बन सकता है। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना ही एकमात्र रास्ता है।
