नई दिल्ली : पार्लियामेंट अटैक की 24वीं बरसी पर पूरा देश संसद में हुए हमले में शहीद जवानों की बहादुरी को याद करते हुए उन्हें अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित कर रहा है. 13 दिसंबर 2001 यानी वो तारीख जब जनप्रतिनिधियों की सवारी मानी जाने वाली सफेद एंबेसडर कार में सवार होकर आए पांच आतंकवादियों ने लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानी संसद भवन पर हमला करके देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया था.
अब 24 साल बाद भी उस समय संसद भवन में मौजूद हर शख्स के जेहन में उस आतंकी हमले की यादें ताजा हैं. संसद पर हुए कायराना हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवानों समेत सीआरपीएफ की महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे. वहीं पांचों आतंकवादी मारे गए थे.
24 साल पहले आज के दिन दिल्ली की तेज हवाएं शीतलहर का अहसास करा रही थीं. कड़ाके की ठंड के बीच संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. उस समय ‘महिला आरक्षण बिल’ को लेकर हंगामा चल रहा था. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नेता प्रतिपक्ष सोनिया गांधी भी संसद भवन से निकल चुके थे. उस समय किसी ने ये सोचा भी न होगा कि चंद मिनटों में भारत के लोकतंत्र की आस्था के सबसे बड़े प्रतिष्ठान पर ऐसा आतंकी हमला होगा, जो देश को झकझोर कर रख देगा.
सुबह करीब 11.30 बजे एक सफेद एंबेसडर कार संसद भवन के गेट नंबर 12 से प्रवेश करती है. कार के प्रवेश करते ही सुरक्षा कर्मियों को शक हुआ और वे कार के पीछे दौड़े. इसी बीच, वह कार उपराष्ट्रपति की खड़ी गाड़ी से टकरा गई. टक्कर होते ही कार सवार आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. आतंकियों के पास AK-47 समेत कई अत्याधुनिक हथियार थे. देखते ही देखते पूरा संसद परिसर गोलियों की आवाजों से दहल उठा.
अचानक हुए हमले से अफरातफरी मच गई. CRPF की बटालियन ने मोर्चा संभाला. जब गोलियों की गूंज सुनाई दे रही थी, तब संसद में गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत कई सीनियर नेता और पत्रकार मौजूद थे. हालात के मद्देनजर सभी को अंदर ही रहने को कहा गया और तब संसद को पूरी तरह सील कर दिया गया.
इस बीच एक आतंकी गेट नंबर 1 से सदन में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन सुरक्षा बलों ने उसे वहीं ढेर कर दिया. इसके बाद, अन्य चार आतंकी गेट नंबर 4 की ओर बढ़े, जहां मुठभेड़ में तीन को मार गिराया गया. आखिरी आतंकी गेट नंबर 5 की ओर भागा, पर वह भी कुछ ही मिनटों में सुरक्षा बलों की गोलियों का शिकार हो गया. यह मुठभेड़ सुबह 11:30 बजे शुरू हुई और शाम करीब 4 बजे तक चली. देश के जांबाज सुरक्षाकर्मियों की बहादुरी और त्वरित कार्रवाई से उस दिन एक बड़ा हादसा टल गया.
संसद पर हमले के दो दिन बाद 15 दिसंबर 2001 को, अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन को गिरफ्तार किया गया. बाद में मामले की सुनवाई हुई और सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफशान को बरी कर दिया, लेकिन अफजल गुरु के खिलाफ आरोप सिद्ध होने पर उसे मौत की सजा सुनाई गई. शौकत हुसैन की सजा मौत से घटाकर 10 साल कर दी गई. 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी दे दी गई.
इस हमले में दिल्ली पुलिस के 5 बहादुर जवान, सीआरपीएफ की एक महिला सुरक्षाकर्मी, राज्यसभा सचिवालय के 2 कर्मचारी और एक माली ने अपनी जान गंवाई थी. संसद पर हुआ यह हमला भारत के इतिहास की गंभीर आतंकी घटनाओं में से एक माना जाता है.
