रांची/बोकारो : पश्चिमी अफ्रीकी देश नाइजर में हुई गणेश करमाली की हत्या के 13 दिन बाद उनका शव मंगलवार को उनके पैतृक गांव कारीपानी (बोकारो) पहुंचा। शव के साथ जैसे ही एम्बुलेंस गांव पहुंची, पूरा इलाका शोक में डूब गया। हर आंख नम थी, हर चेहरे पर उदासी थी। घर के बाहर गणेश की पत्नी, मां और छोटे-छोटे बच्चों की चीत्कार सुनकर माहौल बेहद गमगीन हो गया।
गणेश करमाली की मौत की खबर पहले ही गांव में फैल चुकी थी, लेकिन जब उनका शव गांव पहुंचा तो सैकड़ों ग्रामीण अंतिम दर्शन के लिए जमा हो गए। शव को देखते ही पत्नी यशोदा देवी बेहोश हो गईं, जबकि बच्चे रो-रो कर बेसुध हो गए। गांव में पहली बार इस तरह की घटना देखने को मिली, जिससे लोगों के बीच भय और गुस्से का माहौल भी देखा गया।
गणेश करमाली अपने परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य थे। उनके परिवार में मां गोलकी देवी, पिता धनाराम करमाली, पत्नी यशोदा देवी, दो बेटियां राजकुमारी (17), ज्योति (5) और एक बेटा अंशू (2) हैं। पहले ही उनका एक 10 वर्षीय बेटा ट्रेन हादसे में मौत का शिकार हो चुका है। ऐसे में अब पूरा परिवार सहारे के बिना जीवन जीने को मजबूर हो गया है। गणेश की बेटी की शादी महज एक महीने पहले ही हुई थी, लेकिन उस समय भी कंपनी से छुट्टी नहीं मिलने के कारण वे गोमिया अपने गांव नहीं आ सके थे। यह उनके जीवन की अंतिम विदाई साबित हुई।
गणेश करमाली ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड में कार्यरत थे और 15 जुलाई 2025 को नाइजर में अज्ञात अपराधियों ने उन पर हमला कर गोली मार दी थी। इस हमले में उत्तर प्रदेश के कृष्णा गुप्ता की भी मौत हुई थी, जबकि जम्मू-कश्मीर के रणजीत सिंह का अपहरण कर लिया गया था। इस भयावह वारदात के बाद से प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
घटना की जानकारी मिलते ही प्रवासी मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली गांव पहुंचे। उन्होंने कहा कि यह घटना दुखद ही नहीं, बल्कि चिंताजनक भी है। इससे पहले 25 अप्रैल 2025 को नाइजर में ही झारखंड के गिरिडीह जिले के पांच मजदूरों का अपहरण हुआ था, जिनकी रिहाई अब तक नहीं हो सकी है।
उन्होंने कहा कि यह अकेली घटना नहीं है, बल्कि हर साल कई प्रवासी मजदूर अपनी जान गंवा रहे हैं या अपहरण का शिकार हो रहे हैं। लेकिन सरकार की ओर से संरक्षा और पुनर्वास को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से अपील की कि विदेशों में काम करने वाले भारतीय मजदूरों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं और इस प्रकार की घटनाओं को रोका जाए।
गणेश की मौत से कारीपानी गांव में मातम पसरा हुआ है। हर घर में उसकी चर्चा है, हर आंख में आंसू हैं। गणेश की सादगी और मेहनत की मिसाल गांव में दी जाती थी। आज वही मेहनती इंसान घर लौटकर तिरंगे में लिपटा आया, जिसने अपने परिवार का पेट पालने के लिए हजारों किलोमीटर दूर अपनी जान की बाजी लगा दी थी।