सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड विद्युत बोर्ड के कर्मचारियों को दी राहत, नियुक्तियां फिर से बहाल

SC-Jharkhand-Bijli

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के तीन कर्मचारियों की नियुक्तियां बहाल करते हुए कहा कि निर्दोषों को सामूहिक रूप से दंडित करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। अदालत ने झारखंड हाईकोर्ट के दिसंबर 2021 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें नियुक्तियां यह कहकर रद्द की गई थीं कि वे स्वीकृत पदों से अधिक हैं। 

जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि नियुक्तियां वैध प्रक्रिया से हुईं और पद स्वीकृत थे। ऐसे में इन्हें अवैध नहीं कहा जा सकता, अधिकतम इन्हें अनियमित माना जा सकता है।

यह फैसला मंगलवार को उन अपीलों पर सुनाया गया, जिनमें झारखंड हाईकोर्ट की दिसंबर 2021 की उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें तीन कर्मचारियों की नियुक्तियां यह कहते हुए रद्द कर दी गई थीं कि वे स्वीकृत पदों से अधिक हैं। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखना निर्दोष कर्मचारियों को उन गलतियों के लिए दंडित करना होगा, जो उनसे संबंधित ही नहीं हैं। यह न्याय का उल्लंघन होगा।

पीठ ने कहा कि डॉक्ट्रिन ऑफ सेवरिबिलिटी (विभाज्यता का सिद्धांत) केवल संवैधानिक मामलों तक सीमित नहीं है बल्कि यह सेवा कानून में भी निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। यह उन कर्मचारियों की रक्षा करता है, जिनकी नियुक्तियां वैध थीं लेकिन प्रशासनिक त्रुटियों की वजह से सामूहिक रूप से रद्द कर दी गईं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बड़े पैमाने पर की गई नियुक्तियों में पाई गई खामियों के आधार पर सभी की नियुक्तियां रद्द करना न केवल ईमानदार कर्मचारियों का मनोबल गिराता है, बल्कि सार्वजनिक प्रशासन की विश्वसनीयता को भी कमजोर करता है। अदालत ने यह भी पाया कि नियुक्ति के समय पद स्वीकृत थे, चयन प्रक्रिया पारदर्शी थी और उम्मीदवार योग्य थे। 

इसलिए इन नियुक्तियों को अवैध नहीं कहा जा सकता, अधिकतम इन्हें अनियमित कहा जा सकता है। पीठ ने स्पष्ट किया कि भविष्य में ऐसे मामलों में अदालतों और अधिकारियों को सामूहिक रद्दीकरण से पहले अनिवार्य रूप से अलगाव की संभावना पर विचार करना चाहिए।