झारखंड को टीबी मुक्त बनाने में थोड़ा और समय लगेगा-यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. कमलेश

SNMMCH-Tibi-patient

धनबाद : वर्ष 2024 तक यक्ष्मा से देश को मुक्त नही किया जा सकता, इसमें थोड़ा और समय लगने की संभावना है। हमलोग इस मकशद को पूरा करने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे है। यह बातें गुरुवार को SNMMCH पहुचे राज्य यक्ष्मा पदाधिकारी डॉक्टर कमलेश कुमार ने कही। 

बताते चले कि राज्य में हुए 2023 में हुए एक सर्वे के मुताबिक यक्ष्मा मरीजों की कुल संख्या 59 हजार के करीब थी।
इस बीमारी के उनमूलन के लिए हेमंत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने वर्ष 2023 में दावा किया था कि साल 2024 तक प्रदेश में यक्ष्मा रोग से पीड़ित मरीजों पूरे विश्व में टीबी उन्मूलन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक है। राष्ट्रीय लक्ष्य वर्ष 2025 तक है। जबकि झारखंड में टीबी उन्मूलन का लक्ष्य दिसंबर 2024 तक रखा गया था। 

टीबी उन्मूलन के लिए कार्य योजना तैयार कर ससमय कार्य करते हुए लक्ष्य को प्राप्त करना है। सभी जिलों में टीबी के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा पंचायत को टीबी मुक्त करने को लेकर काम हो रहे हैं। जब तक एक-एक गांव एवं पंचायत टीबी मुक्त नहीं होगा, टीबी मुक्त जिला एवं राज्य की परिकल्पना बेईमानी होगी। ये बातें सूबे के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कही थी।

राज्य यक्ष्मा पदाधिकारी डॉक्टर कमलेश कुमार की अध्यक्षता में टीबी उन्मूलन से संबंधित एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। बैठक में टीबी सेंटर के कर्मचारियों के साथ संवाद किया गया और उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी ली गई।

जिसके बाद एसएनएमएमसीएच अस्पताल के समीप कॉलेज के तीसरे तल्ले पर बने करोड़ों रुपये की लागत से बनाई गई टीबी कल्चर एवं DST लैबोरेटरी पिछले 7 सालों से बिना उपयोग के बंद पड़ी है। और तो और इस लैब का उद्घाटन तीन बार हो चुका है, लेकिन अभी तक इसका संचालन शुरू नहीं हो पाया है। धनबाद के टीबी मरीज इस अत्याधुनिक लैब की सुविधाओं से वंचित हैं, क्योंकि यहां कोई कर्मचारी नहीं है, जिससे लैब के दरवाजे पर ताला ही लगा रहता है।

गुरुवार को राज्य के यक्ष्मा पदाधिकारी डॉक्टर कमलेश कुमार धनबाद पहुंचे और एसएनएमएमसीएच अस्पताल में बंद पड़े टीबी कल्चर एवं DST लैबोरेटरी की जानकारी लिया। उन्होंने लैब में मौजूद उपकरणों की स्थिति का जायजा लिया और उनकी उपयोगिता की जांच की।

टीबी मुक्त पहले 10 पंचायत होंगे सम्मानित : उन्होंने कहा कि राज्य सरकार टीबी मुक्त पंचायत कार्यक्रम की शुरूआत आज से कर रही है। प्रथम दस टीबी मुक्त पंचायत के प्रतिनिधियों को राज्य सरकार द्वारा राज्य स्तर पर पुरस्कृत किया जाएगा। साथ ही सभी टीबी मुक्त पंचायतों को स्वर्ण, रजत और कॉस्य पदक प्रदान किये जाएंगे।

उन्होंने कहा कि सरकार अपने स्तर पर टीबी उन्मूलन हेतु हर संभव प्रयास कर रही है, लेकिन अन्य विभागों के समन्वय के बिना यह कार्य संभव प्रतीत नहीं हो रहा है। अतः इस दिशा में श्रम, उद्योग, खनन, सामाजिक सुरक्षा, डाक विभाग, आदिवासी कल्याण विभाग इत्यादि से समन्वय बना कर कार्य करने का प्रयास किया जा रहा है।

पंचायत में शिविर लगाकर टीबी की हो जांच : श्रम नियोजन प्रशिक्षण एवं कौशल विकास विभाग के मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि सभी जिलों तथा अन्य अस्पतालों में टीबी के लिए अलग विंग बनाया जाना चाहिए। इससे लोगों को जांच कराने में संकोच नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि पंचायत में शिविर लगाकर टीबी की जांच की जानी चाहिए। हार्ड टू रिच एरिया में भी जांच जरूरी है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति को यदि टीबी हो और वह इलाजरत नहीं हो, तो साल में लगभग 10 से 15 नए लोगों को संक्रमित कर सकता है। हमारे उद्योग, कल कारखानों में कार्य करने वाले अधिकारी – कर्मचारी इत्यादि एक दूसरे से बहुत नजदीक होकर कार्य करते हैं, जिससे उनमें एक दूसरे से संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है।

वर्क प्लेस पॉलिसी लाने वाले देश का पहला राज्य : स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरूण कुमार सिंह ने कहा कि टीबी वर्कप्लेस पॉलिसी एंड कॉर्पोरेट इंगगमेंट टू एंड टीबी का उद्घाटन करने वाला देश का पहला राज्य झारखण्ड बन गया है। सभी लोग समन्वय स्थापित कर टीबी उन्मूलन का कार्य करें।

टीबी होने का मुख्य कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना तथा अच्छा भोजन नही मिलना है। बैक्टीरिया हवा के माध्यम से फैलता है और फेफड़े को प्रभावित करता है। टीबी से संबंधित भ्रांतियों एवं अंधविश्वास को दूर करते हुए जनभागीदारी के साथ इससे मुकाबला करने हेतु हमें सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि हम इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को ससमय प्राप्त करने में कामयाब हो सकें।

राज्य में बहुत सारे छोटे-बड़े उद्योग है। बहुत सारे लोक उपक्रम है एवं खदानों की भरमार है। हमारी पहुंच राज्य के सुदूरवर्ती इलाको में सहिया की मदद से हो रही है, लेकिन इन कल-कारखानों, खदानों इत्यादि में कार्यरत कर्मचारियों तक हमारी पहुंच नहीं हो पाती है । लोग वर्किंग आवर में अपने कार्यस्थल पर चले जाते हैं एवं हमारे स्वास्थ्य कर्मियों से उनकी मुलाकात नहीं हो पाती है ।

दवाओं की कमी के सवाल पर डॉक्टर कुमार ने बताया कि अब तक दवाओं की कमी के कारण मरीजों को दो महीने के बजाय केवल एक हफ्ते की दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही थीं, जिससे उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। हालांकि, हाल के दिनों में दवाओं की आपूर्ति में सुधार हुआ है और आज धनबाद को दवाओं का कोटा प्राप्त हुआ है। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर भी दवाइयों की खरीदारी की योजना बनाई गई है।

टीबी उन्मूलन के इस अभियान को सफल बनाने के लिए पंचायत स्तर पर जागरूकता और चिकित्सा सेवाओं का विस्तार करने पर जोर दिया गया है, जिससे 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। रिपोर्ट : अमन्य सुरेश (8340184438)

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