झारखंड : अतिरिक्त सत्यापन की शर्त वाले मेमो को अदालत ने किया रद्द

Supreme-Court-Jharkhand

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सरकारी लेन-देन और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सादगी ही असल सुशासन है। कोर्ट ने शुक्रवार को झारखंड सरकार के उस 2009 के आदेश को अवैध करार दिया, जिसमें सहकारी समितियों को स्टांप शुल्क छूट पाने के लिए अतिरिक्त सत्यापन की शर्त दी गई थी। अदालत ने साफ कहा कि अनावश्यक और अतिरंजित शर्तें शासन को जटिल बनाती हैं और नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करती हैं।

जस्टिस पी. एस. नरसिंहा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की बेंच ने कहा कि कोई भी कार्यकारी आदेश यदि अप्रासंगिक, अत्यधिक या बोझिल शर्तों को थोपता है, तो वह कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी प्रक्रियाएं समय, धन और मानसिक शांति तीनों की अनावश्यक बर्बादी करती हैं। इसी सिद्धांत पर अदालत ने झारखंड सरकार के उस मेमो को रद्द कर दिया, जिसमें सहकारी समितियों के अस्तित्व की अतिरिक्त पुष्टि को दस्तावेज पंजीकरण की पूर्व शर्त बना दिया गया था।

अदालत ने कहा कि किसी सहकारी समिति का पंजीकरण प्रमाणपत्र ही उसके वैध अस्तित्व का अंतिम और निर्णायक प्रमाण है। इसलिए, सहकारी समिति के दस्तावेजों के पंजीकरण के लिए असिस्टेंट रजिस्ट्रार से फिर से सिफारिश लेना न केवल अनावश्यक था बल्कि विधिक रूप से भी निरर्थक। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अतिरिक्त सत्यापन किसी भी तरह की वैल्यू एडिशन नहीं करता।

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के उस फैसले को भी पलट दिया, जिसने 2009 के मेमो को सही ठहराया था। अदालत ने आदर्श सहकारी गृह निर्माण स्वावलंबे सोसाइटी लिमिटेड की अपील को मंजूरी देते हुए कहा कि राज्य सरकार का कदम सहकारी समितियों के अधिकारों और कामकाज में अनावश्यक बाधा पैदा करता है।

यह विवाद 20 फरवरी 2009 को जारी हुए उस सरकारी मेमो से जुड़ा था, जिसमें सभी जिला उप-पंजीयकों को निर्देश दिया गया था कि स्टांप शुल्क छूट तभी दी जाए जब असिस्टेंट रजिस्ट्रार सहकारी समिति की मौजूदगी की पुष्टि करे। सोसाइटी ने इसे कानून के विरुद्ध बताते हुए चुनौती दी थी। सोसाइटी का तर्क था कि पंजीकरण प्रमाणपत्र ही पर्याप्त है और अतिरिक्त शर्तें स्थानांतरण प्रक्रिया में बाधा डालती हैं।

जस्टिस नरसिंहा ने अपने फैसले में लिखा कि सादगी न केवल सुशासन का मूल तत्व है, बल्कि कानून के शासन को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण आधार भी है। अदालत ने कहा कि नागरिकों को सरल, स्पष्ट और सुगम प्रक्रियाएं मिलनी चाहिए और प्रशासन को ऐसे नियमों से बचना चाहिए जो व्यवस्था को जटिल बनाते हैं।