पृथ्वी से टकराने जा रहा एक बड़ा उल्कापिंड YR4; भारत-PAK, बांग्लादेश में होगी तबाही..!

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नई दिल्ली : पृथ्वी पर एक उल्कापिंड के टकराने की जानकारी पहली बार कहां से सामने आई? इसका खतरा कितना गंभीर है? अगर यह उल्कापिंड धरती से टकराता है तो किस-किस क्षेत्र में भारी तबाही मचा सकता है? इसका प्रभाव कितना बड़ा होगा? 

आज से करीब 7 साल बाद अंतरिक्ष से पृथ्वी पर एक जबरदस्त खतरे के आने के आसार हैं। दुनियाभर की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसियां फिलहाल इस खतरे से निपटने के लिए योजना तैयार करने में जुटी हैं। फिर चाहे वह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी- नासा हो या चीन, जो कि इस खतरे से निपटने के लिए सुरक्षाबल की अलग टुकड़ी तक बनाने की तैयारी कर रहा है। यह खतरा है एक उल्कापिंड का, जो कि 2032 में पृथ्वी से टकरा सकता है। अभी तक इस उल्कापिंड के धरती पर गिरने का खतरा कम है, हालांकि अगर यह सच हुआ तो नुकसान बड़ा हो सकता है।

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर पृथ्वी पर एक उल्कापिंड के टकराने की जानकारी पहली बार कहां से सामने आई? इसका खतरा कितना गंभीर है? अगर यह उल्कापिंड धरती से टकराता है तो किस-किस क्षेत्र में भारी तबाही मचा सकता है? इसका प्रभाव कितना बड़ा होगा? अलग-अलग देश इस परेशानी से निपटने के लिए क्या तैयारी कर रहे हैं? आइये जानते हैं…

YR4 उल्कापिंड का पूरा नाम 2024 YR4 रखा गया है। इस उल्कापिंड को अपोलो-टाइप यानी पृथ्वी को पार करने वाली वस्तु के तौर पर चिह्नित किया गया। वाईआर4 की पहली बार खोज चिली के रियो हुर्तादो में स्थित एक उल्कापिंड की निगरानी रखने वाले स्टेशन 27 दिसंबर 2024 को की।

बताया जाता है कि जब एस्टरॉयड टेरेस्ट्रियल इंपैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम (एटलस) ने इस उल्कापिंड के खतरे को लेकर चेतावनी जारी की तब दुनियाभर की अंतरिक्ष एजेंसियों में हड़कंप मच गया। इसके बाद से ही अंतरिक्ष एजेंसियों ने वाईआर4 को अंतरिक्ष से गिरने वाली वस्तुओं के जोखिम की लिस्ट में नंबर-1 पर रख दिया।

मौजूदा समय में वाईआर4 उल्कापिंड पृथ्वी से करीब 6.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है। हालांकि, यह तेजी से आगे बढ़ रहा है। वाईआर4 के बढ़ते खतरे पर जेम्स वेब टेलीस्कोप की मदद से लगातार नजर रखी जा रही है और इसके बदलती कक्षा को समझने और उसके भविष्य के प्रभावों को भी परखा जा रहा है।

चौंकाने वाली बात यह है कि इस उल्कापिंड के कक्षा बदलने की वह से यह मार्च 2025 तक जेम्स वेब टेलीस्कोप पर नजर आएगा, हालांकि इसके बाद अप्रैल के अंत तक कक्षा में दूर जाने की वजह से इसे ट्रैक करना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। – अंतरिक्ष एजेंसियों का अनुमान है कि वाईआर4 इसके बाद जून 2028 तक किसी भी टेलीस्कोप की पकड़ में नहीं आएगा। यानी करीब 38 महीनों तक वैज्ञानिक सिर्फ अनुमानों के आधार पर ही उल्कापिंड को ट्रैक करेंगे। इसके असल खतरे के बारे में टेलीस्कोप से जानकारी तीन साल के लंबे अंतराल के बाद मिलेगी।

यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) में ‘नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट कॉर्डिनेशन सेंटर’ के प्रबंधक लुका कॉन्वर्सी के मुताबिक, अब तक यह उल्कापिंड चट्टानी पदार्थों से बना नजर आता है। इसममें लोहे और अन्य धातुओं की पहचान नहीं की जा पाई है। यानी पृथ्वी के वातावरण में पहुंचने के बाद यह तेज गति की वजह से छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट सकता है और धरती से टकराने की स्थिति में इसका प्रभाव भी कम हो सकता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर वाईआर4 उल्कापिंड धरती से टकराने की तरफ बढ़ता है तो इसकी गति में गुरुत्वाकर्षण बल भी जुड़ जाएगा। यानी धरती से यह करीब 17 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से टकरा सकता है। हालांकि, इसका धरती पर प्रभाव कितना ज्यादा होगा, यह इसके टकराने वाली सतह पर निर्भर करता है। अगर इस उल्कापिंड की 130 फीट चौड़ाई वाली सतह धरती से टकराती है तो यह एक बड़े धमाके की तरह होगा। इससे धरती पर बड़ा ब्लास्ट हो सकता है, हालांकि ज्यादा तबाही की आशंका नहीं है।

लेकिन अगर इस उल्कापिंड का 300 फीट लंबाई वाली सतह धरती से इस रफ्तार पर टकराई तो यह एक पूरे शहर को खत्म करने की क्षमता रखता है। यह अपने आप में एक आपदा की तरह होगा और इसलिए इस वाईआर4 पर नजर रखना बेहद जरूरी है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि एक संभावना यह भी है कि धरती से टकराने से पहले यह उल्कापिंड हवा में ही आग से खत्म हो जाए। हालांकि, अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके टकराने से होने वाला ब्लास्ट भारी तबाही मचा सकता है। इसकी ताकत 80 लाख टन टीएनटी (विस्फोटक) के बराबर होगी, जो कि हिरोशिमा में गिरे परमाणु बम से 500 गुना ज्यादा ताकतवर होगा। इस तरह का विस्फोट 50 किलोमीटर के दायरे में भारी तबाही मचा सकता है। अगर उल्कापिंड समुद्र या महासागर में गिरता है तो इससे सुनामी का खतरा पैदा हो सकता है।

यूं तो इस उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने की संभावना 2.3 फीसदी ही है। यानी 97 फीसदी से ज्यादा अनुमान यह है कि वाईआर4 पृथ्वी के करीब से गुजर जाएगा। इसके बावजूद नासा ने उल्कापिंड की मौजूदा कक्षाओ की गणना के आधार पर अपने अनुमानों की जानकारी देना जारी रखा है।

नासा के कैटालिना स्काई सर्वे प्रोजेक्ट के इंजीनियर डेविड रैंकिन के मुताबिक, अगर उल्कापिंड का टकराना सच होता है तो इसके प्रभाव का दायरा भी काफी बड़ा हो सकता है। अभी नासा ने जो अनुान लगाए हैं, उसके मुताबिक, वाईआर4 दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, दक्षिण एशिया, अरब सागर, अटलांटिक महासागर या अफ्रीका के कुछ हिस्सों को प्रभावित कर सकता है।

जिन देशों में इस उल्कापिंड के सबसे बुरे प्रभाव का अंदेशा लगाया गया है, उनमें दक्षिण एशिया से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश; अफ्रीका से इथियोपिया, सूडान और नाइजीरिया शामिल हैं। इसके अलावा दक्षिण अमेरिका में वेनेजुएला, कोलंबिया और इक्वाडोर को भी खतरे वाले क्षेत्रों में रखा गया है। हालांकि, यह सिर्फ शुरुआती डाटा के आधार पर लगाए गए अनुमान हैं। अगर वाईआर4 अपनी गति और कक्षा को बदलता है तो प्रभाव से जुड़े अनुमान बदल सकते हैं।