नई दिल्ली-NewsXpoz : यूरोपीय संघ के चुनावों में धुर दक्षिणपंथी पार्टी से हार के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने देश में तत्काल चुनाव कराने का एलान कर दिया था. फ्रांस के मतदाता 30 जून और 7 जुलाई को संसद के नए सदस्यों का चुनाव करेंगे. 9 जून को हुए यूरोपीय संसद के चुनावों में दक्षिणपंथी पार्टी ने इमैनुएल मैक्रों की पार्टी से दोगुना वोट शेयर हासिल किया था.
फ्रांस में 2027 तक संसदीय चुनाव कराने की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन मैंक्रों को समर्थन जुटाने में आ रही परेशानी और अविश्वास मत का सामना करने के खतरे से बचने के लिए उन्होंने चुनाव कराने का एलान कर दिया.
राष्ट्रपति मैक्रों की पार्टी के पास निवर्तमान संसद में बहुमत नहीं था. जिसका मतलब था कि उन्हें कानूनों को सदन से पास कराने के लिए लगातार दूसरे सांसदों के समर्थन की जरूरत पड़ती थी या विवादास्पद रूप से अधिनियमित करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों का उपयोग करना पड़ता था. ऐसे में मैंक्रों को व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था. फ्रांस में आखिरी बार साल 2022 में संसदीय चुनाव हुए थे. हालांकि, मैक्रों की पार्टी अपने दम पर पूर्ण बहुमत नहीं हासिल कर पाई.
पहले चरण का मतदान : फ्रांस के मतदाता 30 जून और 7 जुलाई को संसद के नए सदस्यों का चुनाव करेंगे. बहुतम का आंकड़ा 289 है. लेकिन वर्तमान में मैंक्रों की पार्टी के पास 250 सीटें ही थी. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी नेशनल रैली के पास 88 सीटें थी. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस संख्या में बदलाव की संभावना है. अधिकांश नतीजे समान विचारधारा वाले दलों के बीच मतदान और राजनीतिक गतिशीलता पर निर्भर करेंगे.
दो बार क्यों वोट देंगे मतदाता? : आज यानी रविवार को जारी मतदान में जहां 25 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया और आधे से अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है. वहीं, अगर किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिलता है तो 12.5 प्रतिशत से अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को दोबारा टिकट दिया जाएगा. इन सीटों पर 7 जुलाई को मतदान होगा.
वोटिंग की यह प्रणाली सामरिक मतदान यानी टेक्टिकल वोटिंग के लिए गुंजाइश प्रदान करती है. यानी जिन मतदाताओं का उम्मीदवार रेस में नहीं है वो किसी और पार्टी की ओर रुख कर सकते हैं. सहयोगी पार्टी की संभावनाओं को देखते हुए पार्टियां कई बार अपना उम्मीदवार भी वापस ले लेती हैं. इस साल मैक्रों और उनके गठबंधन के लिए मुख्य चिंता व्यापक वामपंथी न्यू पॉपुलर फ्रंट गठबंधन है. विशेषज्ञों का कहना है कि वाम गठबंधन मैंक्रों की पार्टी के वोटों में सेंध लगा सकती है. अगर ऐसा होता है तो मैक्रों को गठबंधन तालमेल से चलना होगा.