नई दिल्ली : तमिलनाडु में त्रिभाषा नीति और हिंदी पर जारी बहस के बीच केंद्र सरकार ने एक बार फिर स्थिति स्पष्ट की है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य मातृभाषा को बढ़ावा देना है. इसमें सभी भाषाओं को समान महत्व दिया गया है. एनईपी में यह कहीं नहीं कहा गया है कि हिंदी ही पढ़ाई जाएगी. उन्होंने स्पष्ट किया कि तमिलनाडु में तमिल ही मुख्य भाषा होगी.
रविवार को मीडिया से बात करते हुए धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, “तमिलनाडु में कुछ मित्र राजनीतिक उद्देश्य से इसका विरोध कर रहे हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हमने कहीं नहीं कहा है कि हिंदी ही पढ़ाई जाएगी. हमने यह कहा है कि मातृभाषा आधारित शिक्षा होगी. तमिलनाडु में तमिल ही मुख्य भाषा रहेगी.
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा, “कुछ लोगों के राजनीतिक उद्देश्य का मैं उत्तर नहीं देना चाहता हूं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, भारतीय भाषाओं को महत्व देती है. फिर वह चाहे हिंदी हो या तमिल, पंजाबी हो या उड़िया. बहुभाषी देश में सभी भाषाओं का समान अधिकार है. समान तरीके से उसे पढ़ाया जाना चाहिए, राष्ट्रीय शिक्षा का यही उद्देश्य है.”
बताते चलें कि तमिलनाडु की द्रमुक सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा प्रावधान को राज्य में लागू करने से इनकार कर रही है. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का आरोप है कि इस नीति के जरिए उन पर हिंदी भाषा थोपने की कोशिश हो रही है. एमके स्टालिन के मुताबिक, उनकी सरकार अपनी दो-भाषा नीति से पीछे नहीं हटेगी. तमिलनाडु में दो भाषा नीति लागू है और आगे भी वही लागू रहेगी.
वहीं केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि भाषा हमारी पहचान की भावना का एक हिस्सा है और यह हमें समुदाय और समाज के सदस्यों के रूप में भी जोड़ती है. भाषा को किसी और पर थोपा नहीं जा सकता. यह बातचीत करने, विचारों का आदान-प्रदान करने और एक आम समझ बनाने के साथ-साथ विविधता और बहुलता की सराहना करने का एक माध्यम है. मंत्रालय के मुताबिक, नई शिक्षा नीति मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देती है.
धर्मेंद्र प्रधान से पहले केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी भी अपने एक संदेश में कह चुके हैं कि लोगों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पढ़ा भी नहीं है, लेकिन वे भाषा थोपने का आरोप लगा रहे हैं. वे लोग केवल अपने कठोर, संकीर्ण राजनीतिक दृष्टिकोण को थोपने के लिए ऐसा कर रहे हैं. जबकि एनईपी में साफ कहा गया है कि शिक्षा और कक्षा में बातचीत की भाषा स्थानीय भाषा या मातृभाषा ही होगी.