धनबाद : पुराना बाजार में दशकों पुरानी होलिका दहन की परंपरा, सैकड़ों की संख्या में जुटते है लोग 

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धनबाद-NewsXpoz : कोयलांचल धनबाद शहर के हृदय स्थल पुराना बाजार स्थित शंभु धर्मशाला परिसर में लगभग पांच दशक से होलिका दहन का आयोजन पारंपरिक तथा विधि-विधान से होता आ रहा है। होलिका दहन का आयोजन मारवाड़ी युवा मंच द्वारा किया जाता है। यहां होलिका दहन के दिन महिलाएं सुबह ही एकत्र होती है और पूरे विधि-विधान से होलिका दहन के लिए उपले का ढ़ेर जमा करती है। रात में नक्षत्र-मुहूर्त के अनुसार विधि-विधान से होलिका दहन का आयोजन संपन्न होता है।

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NewsXpoz (@newsxpoz.bsky.social) 2025-03-13T07:41:29.834Z

होली त्यौहार को लेकर लोगों के बीच उत्साह पूरे चरम पर है। वही होली के पहले होलिका दहन की परंपरा को भी धनबाद में लोग बढ़-चढ़कर पारंपरिक तरीके से निभाने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहे हैं। शहर के पुराना बाजार स्थित शंभू धर्मशाला परिसर में करीब 50 वर्षों से होलिका दहन का आयोजन पारंपरिक तरीके से किया जाता रहा है। जो वर्षों बाद वर्तमान में भी कायम है।

होलिका दहन की परंपरा को निभाने के लिए शहर की महिलाएं आज गुरुवार को सुबह से ही विधि पूर्वक तैयार होकर शंभू धर्मशाला परिसर में पहुंची। जहां पारंपरिक तरीके से अपने घरों से लाए हुए उपले को एक विशेष तरीके से सजाया। उपले को सजाने के बाद महिलाओं ने परिक्रमा करते हुए उपले के ढेर को कच्चा धागा लपेटकर पूजा-अर्चना की।

वहां उपस्थित महिलाओं ने बताया कि यह होलिका दहन पूरी विधि पूर्वक नक्षत्र-मुहूर्त के मुताबिक आज रात संपन्न होगा। महिलाओं ने यह भी बताया कि निर्धारित समय पर होलिका दहन होने के दौरान सैकड़ो की संख्या में महिला-पुरुष एकत्र होते हैं और एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं। इस प्रकार होली की शुरुआत इसी स्थान से करते हैं।

होलिका दहन की तिथि और शुभ मुहूर्त : पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे शुरू होगी और 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे समाप्त होगी। ऐसे में होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा और रंगों की होली 14 मार्च को खेली जाएगी। इस बार होलिका दहन पर भद्रा का साया रहेगा, जो शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है। ऐसे में ज्योतिषीय गणना के अनुसार, भद्रा काल 13 मार्च को सुबह 10:35 से देर रात 11:26 बजे तक रहेगा।

होलिका दहन की पौराणिक कथा : पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब हिरण्यकशिपु नाम का असुर राजा अपने पुत्र प्रहलाद से नाराज था क्योंकि वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु चाहता था कि उसका बेटा केवल उसकी पूजा करे, लेकिन प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा की। आखिर में, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे यह वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर जलती आग में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। यही कारण है कि हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में होलिका दहन किया जाता है। रिपोर्ट : अमन्य सुरेश (8340184438)