नई दिल्ली-NewsXpoz : हमास चीफ इस्माइल हानिया की हत्या से बदले की आग में धधक रहे ईरान ने इजरायल से इंतकाम लेने का खुला ऐलान कर दिया है. ईरान के कोम में जामकरन मस्जिद के गुंबद पर लाल झंडा लहरा दिया गया है, जो सीधा संदेश दे रहा है कि ईरान अगले कुछ समय में बड़ा धमाका करने वाला है. इधर, दुनिया के कई देशों ने भी हमास प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या की निंदा की है.
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा कि राजधानी तेहरान में तड़के हुए हवाई हमले में इस्माइल हानिया के मारे जाने के बाद इजरायल ने अपने लिए कठोर सजा खुद तैयार कर ली है. उन्होंने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर एक बयान में कहा कि उसका बदला लेना हमारा कर्तव्य है. हानिया हमारी सरजमीं पर एक प्रिय मेहमान थे.
कब-कब फहराया जाता है लाल झंडा? : ईरान की ऐतिहासिक जामकरन मस्जिद पर एक बार फिर लाल झंडा फहराया गया है. इस मस्जिद पर फहराया जाने वाला लाल झंडा जंग के ऐलान का प्रतीक माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह पहला मौका नहीं है. पिछले 3 सालों में यह दूसरा मौका है जब ईरान ने जंग का ऐलान किया है. जामकरन मस्जिद ईरान के 7वें सबसे बड़े शहर कोम में स्थित है.
यह मस्जिद शिया मुसलमानों का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. यहां पूरे ईरान से तीर्थयात्री पहुंचते हैं. इस मस्जिद का निर्माण शिया मुसलमानों के 12वें इमाम मादी (AS) के आदेश के बाद हुआ. इमाम के आदेश का पालन करते हुए हसन बिन मसला ने 393 AH में मस्जिद का निर्माण कराया था.
जामकरन मस्जिद पर कई बार लाल झंडा फहराया जा चुका है. इस झंडे के अपने कई मायने हैं.4 जनवरी 2020 को बगदाद अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर हुए हवाई हमले के जवाब में गुंबद के ऊपर प्रतिशोध के प्रतीक के रूप में लाल झंडा फहराया गया था. आमतौर पर मुहर्रम के दौरान लाल झंडा फहराया जाता है और यह ईरान में कोविड महामारी के जवाब में भी फहराया गया था.
न्यूज एजेंसी AFP की रिपोर्ट के मुताबिक, मस्जिद के गुंबद पर दिखने वाला लाल झंडा ईरान के शहीदों के खून का प्रतीक भी है. इसलिए इसे मुहर्रम के दौरान भी फहराया जाता है. यही वजह है कि मेजर जनरल सुलेमानी की मौत के बाद भी ईरान में कई जगह लाल झंडा फहराया गया था.
नमाज पढ़ना मक्का में नमाज पढ़ने के बराबर : ईरान की टूरिस्ट वेबसाइट मुताबिक, ईरान के शिया मुसलमानों में मान्यता है कि हर मंगलवार की रात में इस मस्जिद में पवित्र इमाम पहुंचते हैं. यही वजह है कि हजारों शिया तीर्थयात्री यहां उस दिन इकट्ठा होते हैं. बड़ी तादात में शिया मुसलमान मानते हैं कि इमाम ने कहा है कि उनके अनुयायियों को इस मस्जिद में चार रकात सलात की नमाज अदा करती चाहिए. यह नमाज मक्का में खान-ए-काबा के अंदर नमाज़ पढ़ने के बराबर है.
मस्जिद के पीछे एक कुआं है, जहां पर तीर्थयात्रियों के लिए अरीजा (अनुरोध) लिखने की प्रथा रही है. ऐसा माना जाता है कि यहां पर तीर्थयात्री जो कुछ लिखकर कुएं में डालते हैं उसे इमाम अल्लाह तक पहुंचाते हैं.
हर हिस्से में पर्शियन कला की छाप : जामकरन मस्जिद के हर हिस्से में पर्शियन कला की छाप है. मस्जिद के डोम को हरे और नीले रंग के पर्शियन पत्थर लगाए गए हैं. मंगलवार शाम को होने वाली विशेष प्रार्थना सभा में ईरान के अलग-अलग हिस्से से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए ईरानी परिवार अक्सर स्टोव, बर्तन और कटलरी साथ लाते हैं. यहां पर रुकने के साथ चाय और भोजन खुद तैयार करते हैं. यहां पर किसी तरह की भगदड़ की स्थिति न बने इसके लिए तीर्थयात्रियों से समय से पहले पहुंचने की सलाह दी जाती है और भीड़ को कंट्रोल करने के इंतजाम किए जाते हैं.
इस मस्जिद में अब तक कई बार निर्माण और मरम्मत कार्य कराए जा चुके हैं. अपने शुरुआती दौर में मस्जिद का आकार छोटा था. ईरान में क्रांति आने के बाद मस्जिद का विस्तार किया गया.