नई दिल्ली : जीवित्पुत्रिका व्रत को मातृशक्ति की अटूट आस्था, त्याग और संकल्प का पर्व माना जाता है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र और मंगलमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है। इसे जितिया पर्व भी कहा जाता है, जिसमें मां अपने पुत्र की सुरक्षा और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। इस वर्ष यह पर्व रविवार, 14 सितंबर को मनाया जाएगा। इससे एक दिन पहले दिन नहाय-खाय की परंपरा निभाई जाती है, जिसके साथ इस व्रत की शुरुआत होती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 14 सितंबर रविवार सुबह 05:04 बजे होगा और 15 सितंबर सोमवार सुबह 03:06 बजे इसका समापन होगा। उदया तिथि के अनुसार 14 सितंबर को सूर्योदय से पहले माताएं कुछ खाकर-पानी पीकर तैयार हो जाएंगी और फिर सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक निर्जला व्रत का पालन करेंगी। यह पर्व खासतौर पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
जितिया व्रत की पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्रियों की आवश्यकता होती है। इसमें जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाने के लिए कुश, चील और सियारिन की आकृति बनाने के लिए गाय का गोबर, अक्षत, पेड़ा और अन्य मिठाई, दूर्वा की माला, श्रृंगार का सामान, सिंदूर, पुष्प, पान और सुपारी, लौंग, इलायची, फल और फूल, गांठ वाला धागा, धूप, दीप, बांस के पत्ते, सरसों का तेल शामिल है।
इस दिन महिलाएं प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं।
सूर्य भगवान को स्नान कराकर उन्हें अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
भगवान के समक्ष दीपक और धूप जलाकर प्रसाद अर्पित करें।
इसके बाद गोबर और मिट्टी से चील व सियारिन की प्रतिमा तथा कुश से जीमूतवाहन की प्रतिमा तैयार करें।
इन प्रतिमाओं को धूप, दीप, चावल, फूल आदि से पूजन करें।
शुभ मुहूर्त में कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है।
पूजा संपन्न होने पर आरती कर प्रसाद बांटें।
अगले दिन पारण करने के बाद दान-दक्षिणा अवश्य दें।
ब्रह्म मुहूर्त 04:33 ए एम से 05:19 ए एम
प्रातः संध्या 04:56 ए एम से 06:05 ए एम
अभिजित मुहूर्त 11:52 ए एम से 12:41 पी एम
विजय मुहूर्त 02:20 पी एम से 03:09 पी एम
गोधूलि मुहूर्त 06:27 पी एम से 06:51 पी एम
सायाह्न सन्ध्या 06:27 पी एम से 07:37 पी एम
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते,
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः
जितिया व्रत की मुख्य कथा चील और सियारिन से जुड़ी है। मान्यता है कि चील ने पूरे नियम और श्रद्धा से यह व्रत किया, जबकि सियारिन ने छल किया। अगले जन्म में चील शीलावती और सियारिन कर्पूरावतिका बनीं। शीलावती को व्रत के पुण्य से सात पुत्र प्राप्त हुए, जबकि कर्पूरा को संतान सुख नहीं मिला। बाद में भगवान जीमूतवाहन की कृपा और इस व्रत के प्रभाव से कर्पूरा को भी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया।
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
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