डीआरडीओ ने पायलट को बचाने वाले स्वदेशी ‘एस्केप सिस्टम’ का किया सफल परीक्षण

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नई दिल्ली : रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने तेज गति से उड़ते लड़ाकू विमान में पायलट की जान बचाने वाली निकासी प्रणाली का सफल परीक्षण किया है। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि इस जटिल परीक्षण से भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में आ गया है जिनके पास उन्नत स्वदेशी निकासी प्रणाली के परीक्षण की क्षमता है। इससे पहले यह सुविधा अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे विकसित देशों के पास ही थी।

चंडीगढ़ की टर्मिनल बैलिस्टिक्स अनुसंधान प्रयोगशाला में किए गए इस परीक्षण में पायलट की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मानव जैसी डमी का प्रयोग किया गया। एलसीए के अगले हिस्से को रॉकेट स्लेड पर रखा गया। करीब 800 किमी प्रति घंटे की रफ्तार आने पर विमान की कैनोपी (ऊपरी शीशा) सही ढंग से टूटी। निकासी प्रणाली ने डमी को बाहर फेंका और पैराशूट की मदद से पायलट की डमी जमीन पर उतरी। 

इस निकासी के दौरान शरीर पर पड़ने वाला जोर और त्वरण आदि रिकॉर्ड किया गया। पूरी प्रक्रिया हवाई और जमीनी कैमरों में कैद की गई। परीक्षण में यह जांचा गया कि आपात स्थिति में विमान की कैनोपी (शीशा/ढक्कन) सही तरीके से टूटकर हटती है या नहीं। पायलट की इजेक्शन सीट समय रहते बाहर निकलती है या नहीं और पूरा बचाव तंत्र ठीक से काम कर पाता है या नहीं।

यह परीक्षण एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के सहयोग से सफलतापूर्वक सम्पन्न किया गया। यह अत्यंत जटिल और गतिशील परीक्षण भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल करता है, जिनके पास उन्नत इन-हाउस एस्केप सिस्टम के पूर्ण परीक्षण की क्षमता उपलब्ध है।

गतिशील इजेक्शन परीक्षण, नेट टेस्ट या जीरो-जीरो टेस्ट जैसे स्थैतिक परीक्षणों की तुलना में कहीं अधिक जटिल होते हैं और इजेक्शन सीट के समग्र प्रदर्शन तथा कैनोपी सेवरेंस सिस्टम की वास्तविक प्रभावकारिता का सबसे विश्वसनीय मानक माने जाते हैं। इस परीक्षण के दौरान एलसीए विमान के अग्रभाग को एक दोहरी स्लेज प्रणाली के साथ संयोजित किया गया, जिसे कई ठोस प्रणोदक रॉकेट मोटर्स के चरणबद्ध प्रज्वलन द्वारा नियंत्रित वेग पर सटीक रूप से आगे बढ़ाया गया।

रक्षा मंत्रालय ने बताया कि यह परीक्षण सफल रहा और पायलट की सुरक्षित निकासी हो पाई। गतिमान रहते हुए निकासी परीक्षण स्थैतिक परीक्षणों से ज्यादा जटिल होते हैं। इनमें इजेक्शन सीट की कार्यक्षमता और कैनोपी अलग करने की प्रणाली की प्रभावशीलता का सही मूल्यांकन होता है। इस परीक्षण के बाद आपात स्थिति में पायलट की जान बचने की संभावना पहले से कहीं ज्यादा होगी।

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इस सफल परीक्षण पर डीआरडीओ, भारतीय वायुसेना, एडीए, एचएएल और रक्षा उद्योग जगत को बधाई दी। उन्होंने इसे आत्मनिर्भरता की दिशा में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी को सशक्त बनाने वाला एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर करार दिया।