जम्मू : जम्मू-कश्मीर में दस साल के अंतराल में विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद बदले माहौल के बीच नए जम्मू-कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव होगा। यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण होगा। इस चुनाव पर देश-दुनिया की निगाहें टिकीं हुई हैं। इस चुनाव के लिए लोकसभा चुनाव की तरह किसी भी दल के बीच गठबंधन सामने नहीं दिख रहा है।
कभी लोकतंत्र व संविधान में आस्था न जताने वाले अलगाववादी चेहरों के भी मैदान में उतरने की संभावना जताई जा रही है। परिस्थितियां बदल गई हैं तो भाजपा के साथ सुर मिलाने वाली अपनी पार्टी तथा पीपुल्स कांफ्रेंस के भी सुर बदले हुए हैं। पीडीपी और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी भी विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए कसरत करती दिख रही है।
नवंबर-दिसंबर 2014 में आखिरी विधानसभा चुनाव हुए थे, तब जम्मू-कश्मीर राज्य था। उस समय विधानसभा की 87 सीटें थीं, जिसमें चार लद्दाख की थीं। चुनाव के बाद पीडीपी-भाजपा की सरकार बनीं, लेकिन 2018 में भाजपा के समर्थन वापस ले लेने से सरकार गिर गई। इसके बाद से राज्य में राज्यपाल व उप राज्यपाल शासन है। 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म हो गया।
जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया। विधानसभा की सीटें बढ़कर 90 हो गईं। इनमें जम्मू संभाग में 43 व कश्मीर संभाग में 47 सीटें हैं। जम्मू संभाग में छह सीटें बढ़ीं जबकि कश्मीर में एक। लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जब पहली बार लोकसभा चुनाव गत दिनों हुए तो माहौल बिल्कुल बदला नजर आया। चुनाव में लोगों ने बढ़ चढ़कर भागीदारी की। पिछले 35 साल के मतदान का रिकॉर्ड टूट गया। इतना ही नहीं कश्मीर में अलगाववादी चेहरे, प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी से जुड़े लोगों, आतंकियों के परिवार के सदस्यों ने मतदान में हिस्सा लिया। बाद में तो जमात ने चुनाव में भागीदारी के लिए अपने संविधान में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की। यदि सब कुछ ठीकठाक रहा तो कई ऐसे चेहरे निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हो सकते हैं।